दिल की हेरा-फेरी करना दीवानों का काम नहीं
हूर-फ़रिश्तों के क़िस्सों में शैतानों का काम नहीं
आ जाएं, बिस्मिल्ल: कर लें, रिज़्क़े-ईमां है यूं भी
लेकिन नुक़्ताचीनी करना मेहमानों का काम नहीं
रिश्तों की गर्माहट से हर मुश्किल का हल मुमकिन है
घर की दीवारों के अंदर बेगानों का काम नहीं
जिस मांझी पर वाल्दैन की नेक दुआ का साया हो
उसकी कश्ती से टकराना तूफ़ानों का काम नहीं
हम बस अपने ख़ून-पसीने का हर्ज़ाना मांगे हैं
हम ईमां वालों पर झूठे एहसानों का काम नहीं
कहने के कुछ मानी भी हों, तब तो कुछ सोचा जाए
शाहों से मुंहज़ोरी करना इंसानों का काम नहीं
सर्दी-गर्मी-बारिश ये सब क़ुदरत की मर्ज़ी पर हैं
इन पर अपना हुक्म चलाना सुल्तानों का काम नहीं !
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हूर-फ़रिश्तों: अप्सराएं और देवदूत; क़िस्सों: आख्यानों; बिस्मिल्ल:: भोजनारंभ; रिज़्क़े-ईमां: निष्ठापूर्वक कमाया हुआ भोजन; नुक़्ताचीनी: दोष निकालना; बेगानों: पराए लोग; वाल्दैन: माता-पिता; साया: छाया; हर्ज़ाना: प्रतिपूर्त्ति; क़ुदरत: प्रकृति।
हूर-फ़रिश्तों के क़िस्सों में शैतानों का काम नहीं
आ जाएं, बिस्मिल्ल: कर लें, रिज़्क़े-ईमां है यूं भी
लेकिन नुक़्ताचीनी करना मेहमानों का काम नहीं
रिश्तों की गर्माहट से हर मुश्किल का हल मुमकिन है
घर की दीवारों के अंदर बेगानों का काम नहीं
जिस मांझी पर वाल्दैन की नेक दुआ का साया हो
उसकी कश्ती से टकराना तूफ़ानों का काम नहीं
हम बस अपने ख़ून-पसीने का हर्ज़ाना मांगे हैं
हम ईमां वालों पर झूठे एहसानों का काम नहीं
कहने के कुछ मानी भी हों, तब तो कुछ सोचा जाए
शाहों से मुंहज़ोरी करना इंसानों का काम नहीं
सर्दी-गर्मी-बारिश ये सब क़ुदरत की मर्ज़ी पर हैं
इन पर अपना हुक्म चलाना सुल्तानों का काम नहीं !
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हूर-फ़रिश्तों: अप्सराएं और देवदूत; क़िस्सों: आख्यानों; बिस्मिल्ल:: भोजनारंभ; रिज़्क़े-ईमां: निष्ठापूर्वक कमाया हुआ भोजन; नुक़्ताचीनी: दोष निकालना; बेगानों: पराए लोग; वाल्दैन: माता-पिता; साया: छाया; हर्ज़ाना: प्रतिपूर्त्ति; क़ुदरत: प्रकृति।