मर्ग के बाद कोई सितम तो न हो
दिल जले तो जले रंजो-ग़म तो न हो
क़ब्र में हो सुकूं अम्न हो सब्र हो
बस हमें ज़िंदगी का वहम तो न हो
दफ़्न के बाद भी दिल धड़कता रहे
इस तरह दोस्तों का करम तो न हो
कल सभी जाएंगे मुट्ठियां खोल कर
दांव पर आज दीनो-धरम तो न हो
ताजिरों को खुली लूट की छूट है
दुश्मने-आम पर यूं रहम तो न हो
मुल्क में मुफ़लिसी बेबसी सब रहे
रिज़्क़ के नाम से आंख नम तो न हो
है ख़ुदा गर कहीं तो तग़ाफुल करे
मोमिनों पर वफ़ा की क़सम तो न हो !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ग: मृत्यु; सितम: अत्याचार; रंजो-ग़म: खेद और दुःख; सुकूं: संतोष; अम्न: शांति; सब्र: धैर्य; वहम: भ्रम; दफ़्न: मिट्टी में दबाना; करम: कृपा; दीनो-धरम: आस्था और धर्म; ताजिरों: व्यापारियों; दुश्मने-आम: सामान्य-जन का शत्रु; रहम: दया; मुल्क: देश; मुफ़लिसी: निर्धनता; बेबसी: विवशता; रिज़्क़: दो समय का भोजन; नम: गीली; गर: यदि; तग़ाफुल: आपत्ति, आक्षेप; मोमिनों: आस्तिकों; वफ़ा: निष्ठा ।
दिल जले तो जले रंजो-ग़म तो न हो
क़ब्र में हो सुकूं अम्न हो सब्र हो
बस हमें ज़िंदगी का वहम तो न हो
दफ़्न के बाद भी दिल धड़कता रहे
इस तरह दोस्तों का करम तो न हो
कल सभी जाएंगे मुट्ठियां खोल कर
दांव पर आज दीनो-धरम तो न हो
ताजिरों को खुली लूट की छूट है
दुश्मने-आम पर यूं रहम तो न हो
मुल्क में मुफ़लिसी बेबसी सब रहे
रिज़्क़ के नाम से आंख नम तो न हो
है ख़ुदा गर कहीं तो तग़ाफुल करे
मोमिनों पर वफ़ा की क़सम तो न हो !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ग: मृत्यु; सितम: अत्याचार; रंजो-ग़म: खेद और दुःख; सुकूं: संतोष; अम्न: शांति; सब्र: धैर्य; वहम: भ्रम; दफ़्न: मिट्टी में दबाना; करम: कृपा; दीनो-धरम: आस्था और धर्म; ताजिरों: व्यापारियों; दुश्मने-आम: सामान्य-जन का शत्रु; रहम: दया; मुल्क: देश; मुफ़लिसी: निर्धनता; बेबसी: विवशता; रिज़्क़: दो समय का भोजन; नम: गीली; गर: यदि; तग़ाफुल: आपत्ति, आक्षेप; मोमिनों: आस्तिकों; वफ़ा: निष्ठा ।