वफ़ा में ज़रा सी कमी पड़ गई
हमें दुश्मनों की कमी पड़ गई
दरिंदे गली दर गली छा गए
कि इंसां की भारी कमी पड़ गई
चला शाह घर लूटने रिंद का
ख़ज़ाने में थोड़ी कमी पड़ गई
कभी ज़ब्त की इन्तेहा हो गई
कभी जोश की भी कमी पड़ गई
फ़रिश्ते उठा ले गए बज़्म से
हमें जब तुम्हारी कमी पड़ गई
ख़ुदा रोज़ हमको बुलाता रहा
मगर वक़्त की ही कमी पड़ गई
अभी तो जनाज़ा उठा तक नहीं
अभी से हमारी कमी पड़ गई !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वफ़ा : आस्था; दरिंदे : हिंसक प्राणी; रिंद : पियक्कड़; ख़ज़ाने : कोष; ज़ब्त : धैर्य; इंतेहा : अति; जोश : उत्साह; फ़रिश्ते : देवदूत; बज़्म : सभा; जनाज़ा : अर्थी।
हमें दुश्मनों की कमी पड़ गई
दरिंदे गली दर गली छा गए
कि इंसां की भारी कमी पड़ गई
चला शाह घर लूटने रिंद का
ख़ज़ाने में थोड़ी कमी पड़ गई
कभी ज़ब्त की इन्तेहा हो गई
कभी जोश की भी कमी पड़ गई
फ़रिश्ते उठा ले गए बज़्म से
हमें जब तुम्हारी कमी पड़ गई
ख़ुदा रोज़ हमको बुलाता रहा
मगर वक़्त की ही कमी पड़ गई
अभी तो जनाज़ा उठा तक नहीं
अभी से हमारी कमी पड़ गई !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वफ़ा : आस्था; दरिंदे : हिंसक प्राणी; रिंद : पियक्कड़; ख़ज़ाने : कोष; ज़ब्त : धैर्य; इंतेहा : अति; जोश : उत्साह; फ़रिश्ते : देवदूत; बज़्म : सभा; जनाज़ा : अर्थी।