हमें अपनी ख़ुदी से जो किसी दिन प्यार हो जाता
तो ये: शौक़-ए-सुख़न नाहक़ सर-ए-बाज़ार हो जाता
उम्मीदों पे उम्मीदें हैं बहानों पे बहाने हैं
अगर वादा वफ़ा होता तो दुश्मन ख़्वार हो जाता
करम ही है तेरा के: हमको दीवाना बना डाला
अगर हम होश में रहते तो दिल बेज़ार हो जाता
अगरचे मौत से पहले तेरा पैग़ाम मिल जाता
तो इस दिल का संभलना और भी दुश्वार हो जाता
ख़ुदा से ये: शिकायत है के: जब हम डूबने को थे
ज़रा दामन पकड़ लेता तो बेड़ा पार हो जाता
रहे जब आलम-ए-पीरी में तुझको ही ख़ुदा माना
न होता कुफ़्र ये: हमसे तो कुछ आज़ार हो जाता
मेरा अहसास-ए-ख़ुद्दारी मुझे रोने अगर देता
तो मेरे आंसुओं से हर चमन गुलज़ार हो जाता
ज़रा-सा ग़म उठा लेते ज़रा-सी जां बचा लेते
ज़रा-सा सब्र करते तो तेरा दीदार हो जाता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: आत्म-बोध; शौक़-ए-सुख़न: साहित्यिक प्रवृत्ति; नाहक़: व्यर्थ; सर-ए-बाज़ार: बिकाऊ वस्तु;
वफ़ा: सार्थक, पूर्ण; ख़्वार: लज्जित; करम: कृपा; बेज़ार: व्याकुल; अगरचे: यदि कहीं; पैग़ाम: संदेश;
दुश्वार: कठिन; आलम-ए-पीरी: अतीन्द्रियता, ईश्वर से संवाद की स्थिति; कुफ़्र: पाप; आज़ार: रोग;
अहसास-ए-ख़ुद्दारी: स्वाभिमान की भावना; गुलज़ार: फूलों से भरपूर; सब्र: धैर्य; दीदार: दर्शन।
तो ये: शौक़-ए-सुख़न नाहक़ सर-ए-बाज़ार हो जाता
उम्मीदों पे उम्मीदें हैं बहानों पे बहाने हैं
अगर वादा वफ़ा होता तो दुश्मन ख़्वार हो जाता
करम ही है तेरा के: हमको दीवाना बना डाला
अगर हम होश में रहते तो दिल बेज़ार हो जाता
अगरचे मौत से पहले तेरा पैग़ाम मिल जाता
तो इस दिल का संभलना और भी दुश्वार हो जाता
ख़ुदा से ये: शिकायत है के: जब हम डूबने को थे
ज़रा दामन पकड़ लेता तो बेड़ा पार हो जाता
रहे जब आलम-ए-पीरी में तुझको ही ख़ुदा माना
न होता कुफ़्र ये: हमसे तो कुछ आज़ार हो जाता
मेरा अहसास-ए-ख़ुद्दारी मुझे रोने अगर देता
तो मेरे आंसुओं से हर चमन गुलज़ार हो जाता
ज़रा-सा ग़म उठा लेते ज़रा-सी जां बचा लेते
ज़रा-सा सब्र करते तो तेरा दीदार हो जाता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: आत्म-बोध; शौक़-ए-सुख़न: साहित्यिक प्रवृत्ति; नाहक़: व्यर्थ; सर-ए-बाज़ार: बिकाऊ वस्तु;
वफ़ा: सार्थक, पूर्ण; ख़्वार: लज्जित; करम: कृपा; बेज़ार: व्याकुल; अगरचे: यदि कहीं; पैग़ाम: संदेश;
दुश्वार: कठिन; आलम-ए-पीरी: अतीन्द्रियता, ईश्वर से संवाद की स्थिति; कुफ़्र: पाप; आज़ार: रोग;
अहसास-ए-ख़ुद्दारी: स्वाभिमान की भावना; गुलज़ार: फूलों से भरपूर; सब्र: धैर्य; दीदार: दर्शन।