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मंगलवार, 12 मई 2015

जुर्म है इश्क़...

चलो  आज  ख़ुद  को  गुनहगार  कर  लें
बुते-दिलनशीं   का    परस्तार    कर  लें

भले  ही  किसी  से  नज़र  चार  कर  लें
मगर यह न होगा कि वो  प्यार कर  लें

सुना  है    कि  दिल    बेचना  चाहते  हैं
न  हो  तो    हमें  ही    ख़रीदार  कर  लें

कहीं   आपको    शौक़े-पुर्सिश   सताए
हमारे   लिए     क़ब्र    तैयार    कर  लें

'नरेगा'  की  उज्रत   गए  साल  की   है
मिले  तो  किसी  रोज़  बाज़ार  कर  लें



अगर  जुर्म  है  इश्क़  उनकी  नज़र  में
मिलें  ख़ुल्द  में  तो  गिरफ़्तार  कर  लें

ख़ुदा  से  मुलाक़ात   तय  हो    चुकी  है
ख़ुदी  को    ज़रा  और    ख़ुद्दार  कर  लें  !

                                                                     (2015) 

                                                            -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: गुनहगार: अपराधी; बुते-दिलनशीं: हृदयस्थ मूर्त्ति, प्रिय की मूर्त्ति; परस्तार: पुजारी; ख़रीदार: क्रेता; शौक़े-पुर्सिश: सांत्वना देने की रुचि; नरेगा: राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना; उज्रत: पारिश्रमिक; जुर्म: अपराध; ख़ुल्द: स्वर्ग; ख़ुदी: आत्म-सम्मान; ख़ुद्दार: स्वाभिमानी । 

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