रूठ जाते हैं प्यार करते हैं
वार क्यूं बार बार करते हैं
हो चुकी उम्र टूट जाने की
आप क्यूं ज़ार ज़ार करते हैं
तीर-तलवार क्या करेंगे हम
बात को धारदार करते हैं
तर्के-उल्फ़त के बाद वो: हमको
दोस्तों में शुमार करते हैं
हमपे हर्ग़िज़ यक़ीं नहीं उनको
ग़ैर का ऐतबार करते हैं
ख़्वाब में क्यूं सताइए आ के
हम हक़ीक़त से प्यार करते हैं
ख़ुदकुशी हल नहीं किसी ग़म का
ज़िंदगी से क़रार करते हैं
शे'र कहिए तो रूह से कहिए
जिस्म को क्यूं सितार करते हैं
लौट पाना हमें नहीं मुमकिन
अर्श पे इंतज़ार करते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ार ज़ार: क्षरित; तर्के-उल्फ़त: प्रेम-भंग; शुमार: गणना; हर्ग़िज़: किंचित भी; यक़ीं: विश्वास; ऐतबार: भरोसा;
हक़ीक़त: यथार्थ; ख़ुदकुशी: आत्महत्या; क़रार: अनुबंध; जिस्म: शरीर; मुमकिन: संभव;अर्श: आकाश, परलोक।
वार क्यूं बार बार करते हैं
हो चुकी उम्र टूट जाने की
आप क्यूं ज़ार ज़ार करते हैं
तीर-तलवार क्या करेंगे हम
बात को धारदार करते हैं
तर्के-उल्फ़त के बाद वो: हमको
दोस्तों में शुमार करते हैं
हमपे हर्ग़िज़ यक़ीं नहीं उनको
ग़ैर का ऐतबार करते हैं
ख़्वाब में क्यूं सताइए आ के
हम हक़ीक़त से प्यार करते हैं
ख़ुदकुशी हल नहीं किसी ग़म का
ज़िंदगी से क़रार करते हैं
शे'र कहिए तो रूह से कहिए
जिस्म को क्यूं सितार करते हैं
लौट पाना हमें नहीं मुमकिन
अर्श पे इंतज़ार करते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ार ज़ार: क्षरित; तर्के-उल्फ़त: प्रेम-भंग; शुमार: गणना; हर्ग़िज़: किंचित भी; यक़ीं: विश्वास; ऐतबार: भरोसा;
हक़ीक़त: यथार्थ; ख़ुदकुशी: आत्महत्या; क़रार: अनुबंध; जिस्म: शरीर; मुमकिन: संभव;अर्श: आकाश, परलोक।