आज बिछड़े ख़याल घर आए
अनगिनत ज़र्द ख़्वाब बर आए
गुमशुदा यार गुमशुदा यादें
लौट आए कि ज़ख़्म भर आए
लोग किरदार पर करेंगे शक़
आप गर होश में नज़र आए
काश ! दिल हो उदास महफ़िल में
काश ! फिर आपकी ख़बर आए
क्या हुआ शाह के इरादों का
रिज़्क़ आए न मालो-ज़र आए
ज़ुल्म की इंतेहा जहां देखी
हम वहीं इंक़लाब कर आए
इश्क़ कर लीजिए कि क्यूं नाहक़
बंदगी का गुनाह सर आए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : ख़याल:विचार; ज़र्द: पीले पड़े, मुरझाए हुए ; बर आए: साकार हुए ; गुमशुदा: खोए हुए; ज़ख़्म: घाव ; किरदार: चरित्र ; शक़ : संदेह; गर : यदि; रिज़्क़ : आजीविका, नौकरी; मालो-ज़र : धन-संपत्ति; ज़ुल्म : अन्याय, अत्याचार ; इंक़लाब : क्रांति ; नाहक़ : व्यर्थ, निरर्थक, अकारण ; बंदगी : भक्ति ; गुनाह : अपराध ।
अनगिनत ज़र्द ख़्वाब बर आए
गुमशुदा यार गुमशुदा यादें
लौट आए कि ज़ख़्म भर आए
लोग किरदार पर करेंगे शक़
आप गर होश में नज़र आए
काश ! दिल हो उदास महफ़िल में
काश ! फिर आपकी ख़बर आए
क्या हुआ शाह के इरादों का
रिज़्क़ आए न मालो-ज़र आए
ज़ुल्म की इंतेहा जहां देखी
हम वहीं इंक़लाब कर आए
इश्क़ कर लीजिए कि क्यूं नाहक़
बंदगी का गुनाह सर आए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : ख़याल:विचार; ज़र्द: पीले पड़े, मुरझाए हुए ; बर आए: साकार हुए ; गुमशुदा: खोए हुए; ज़ख़्म: घाव ; किरदार: चरित्र ; शक़ : संदेह; गर : यदि; रिज़्क़ : आजीविका, नौकरी; मालो-ज़र : धन-संपत्ति; ज़ुल्म : अन्याय, अत्याचार ; इंक़लाब : क्रांति ; नाहक़ : व्यर्थ, निरर्थक, अकारण ; बंदगी : भक्ति ; गुनाह : अपराध ।