किसी की आह दर तक आ गई है
कि ख़ामोशी असर तक आ गई है
बुज़ुर्गों ने रखा था दूर जिसको
वो वहशत आज घर तक आ गई है
पड़ोसी के मकां की हर ख़राबी
मेरे दीवारो-दर तक आ गई है
इरादा-ए-सफ़र की पुख़्तगी है
कि मंज़िल ख़ुद नज़र तक आ गई है
मैं दरिया हूं रवानी इश्क़ मेरा
ये बेताबी बहर तक आ गई है
उठी जो शान से बर्क़े-बग़ावत
सियासत के शजर तक आ गई है
उठा कर अस्लहे तैयार रहिए
यज़ीदी फ़ौज सर तक आ गई है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दर : द्वार ; ख़ामोशी : मौन ; असर : प्रभावोत्पादकता ; बुज़ुर्गों : पूर्वजों ; वहशत : उन्माद, पशु-वृति ; मकां : गृह ; दीवारो-दर : भित्ति एवं द्वार ; इरादा-ए-सफ़र : यात्रा का संकल्प ; पुख़्तगी : दृढ़ता ; मंज़िल : लक्ष्य ; दरिया : नदी ; रवानी : प्रवाह ; बेताबी : व्यग्रता ; बहर : समुद्र ; बर्क़े-बग़ावत : विद्रोह की तड़ित ; शजर : वृक्ष ; अस्लहे : अस्त्र-शस्त्र ; यज़ीदी फ़ौज : अरब के एक अत्याचारी, सिद्धांतविहीन शासक यज़ीद की सेना जिसने हज़रत अली अ. स. के उत्तराधिकारियों का वध किया ।
कि ख़ामोशी असर तक आ गई है
बुज़ुर्गों ने रखा था दूर जिसको
वो वहशत आज घर तक आ गई है
पड़ोसी के मकां की हर ख़राबी
मेरे दीवारो-दर तक आ गई है
इरादा-ए-सफ़र की पुख़्तगी है
कि मंज़िल ख़ुद नज़र तक आ गई है
मैं दरिया हूं रवानी इश्क़ मेरा
ये बेताबी बहर तक आ गई है
उठी जो शान से बर्क़े-बग़ावत
सियासत के शजर तक आ गई है
उठा कर अस्लहे तैयार रहिए
यज़ीदी फ़ौज सर तक आ गई है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दर : द्वार ; ख़ामोशी : मौन ; असर : प्रभावोत्पादकता ; बुज़ुर्गों : पूर्वजों ; वहशत : उन्माद, पशु-वृति ; मकां : गृह ; दीवारो-दर : भित्ति एवं द्वार ; इरादा-ए-सफ़र : यात्रा का संकल्प ; पुख़्तगी : दृढ़ता ; मंज़िल : लक्ष्य ; दरिया : नदी ; रवानी : प्रवाह ; बेताबी : व्यग्रता ; बहर : समुद्र ; बर्क़े-बग़ावत : विद्रोह की तड़ित ; शजर : वृक्ष ; अस्लहे : अस्त्र-शस्त्र ; यज़ीदी फ़ौज : अरब के एक अत्याचारी, सिद्धांतविहीन शासक यज़ीद की सेना जिसने हज़रत अली अ. स. के उत्तराधिकारियों का वध किया ।