जुनूं-ए-इश्क़ तो रोका न जाए
जिएं पर किस तरह सोचा न जाए
सुरूर-ए-हुस्न में इतने हैं ग़ाफ़िल
नज़र का वार तक रोका न जाए
मुअम्मा है अजब-सा ज़िंदगी भी
करें लाखों जतन, समझा न जाए
लगे है चोट सीने पर वफ़ा से
करम ये: उम्र भर होता न जाए
सज़ा दें, बद्दुआ दें या मिटा दें
बुरा उनके लिए चाहा न जाए
खड़े हैं रू-ब-रू नूर-ए-ख़ुदा के
मलें हम आँख पर धोखा न जाए।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जुनूं : उन्माद, पागलपन; ग़ाफ़िल : भ्रमित; मुअम्मा: पहेली, रहस्य;
वफ़ा: निर्वाह; नूर-ए-ख़ुदा: ईश्वरीय प्रकाश।
जिएं पर किस तरह सोचा न जाए
सुरूर-ए-हुस्न में इतने हैं ग़ाफ़िल
नज़र का वार तक रोका न जाए
मुअम्मा है अजब-सा ज़िंदगी भी
करें लाखों जतन, समझा न जाए
लगे है चोट सीने पर वफ़ा से
करम ये: उम्र भर होता न जाए
सज़ा दें, बद्दुआ दें या मिटा दें
बुरा उनके लिए चाहा न जाए
खड़े हैं रू-ब-रू नूर-ए-ख़ुदा के
मलें हम आँख पर धोखा न जाए।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जुनूं : उन्माद, पागलपन; ग़ाफ़िल : भ्रमित; मुअम्मा: पहेली, रहस्य;
वफ़ा: निर्वाह; नूर-ए-ख़ुदा: ईश्वरीय प्रकाश।