आग बरसा करे है अम्बर से
लोग निकलें तो किस तरह घर से
तश्न: लब को ढलूँ के: मैकश को
पूछती है शराब साग़र से
आज अफ़सर के घर है दीवाली
ला रहा है 'नियाज़' दफ़्तर से
अश्क दो-चार दिन के मेहमां थे
चल पड़े आज दीद:-ए-तर से
ज़ुल्मत-ए-शाह इक बहाना है
है शिकायत तो रूह परवर से
कितना किसमें नमक है तय कर लें
अश्क है रू-ब-रू समंदर से
सारा क़िस्सा ही ख़त्म कर डाला
दिल बहुत ख़ुश है आज ख़ंजर से !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तश्न: लब: प्यासा; मैकश: शराबी; साग़र: मदिरा-पात्र; 'नियाज़': 'भेंट-पूजा', रिश्वत;दीद:-ए-तर: भीगी आंखें;
ज़ुल्मत-ए-शाह: शासक के अत्याचार; रूह परवर: जीवनदाता; रू-ब-रू: समक्ष; ख़ंजर: छुरी।
लोग निकलें तो किस तरह घर से
तश्न: लब को ढलूँ के: मैकश को
पूछती है शराब साग़र से
आज अफ़सर के घर है दीवाली
ला रहा है 'नियाज़' दफ़्तर से
अश्क दो-चार दिन के मेहमां थे
चल पड़े आज दीद:-ए-तर से
ज़ुल्मत-ए-शाह इक बहाना है
है शिकायत तो रूह परवर से
कितना किसमें नमक है तय कर लें
अश्क है रू-ब-रू समंदर से
सारा क़िस्सा ही ख़त्म कर डाला
दिल बहुत ख़ुश है आज ख़ंजर से !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तश्न: लब: प्यासा; मैकश: शराबी; साग़र: मदिरा-पात्र; 'नियाज़': 'भेंट-पूजा', रिश्वत;दीद:-ए-तर: भीगी आंखें;
ज़ुल्मत-ए-शाह: शासक के अत्याचार; रूह परवर: जीवनदाता; रू-ब-रू: समक्ष; ख़ंजर: छुरी।