छोड़िए भी किताब की बातें
ये: गुनाहो-सवाब की बातें
आप जो बिन पिए बहकते हैं
क्या सुनें हम जनाब की बातें
उलझे-उलझे सवाल हैं उनके
हम कहें क्या जवाब की बातें
भूल ही जाएं तो बुरा क्या है
सूरतों की हिजाब की बातें
मुद्द'आ मत बनाइए दिल का
एक ख़ाना-ख़राब की बातें
कोई कम्बख़्त ना करे हमसे
मुफ़लिसी में शराब की बातें
बेशक़ीमत है तोहफ़:-ए-यारी
छोड़ दीजे हिसाब की बातें
पी रहे हैं शराब आंखों से
सोचते हैं अज़ाब की बातें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: किताब: धर्म-ग्रंथ, क़ुर'आन; गुनाहो-सवाब: पाप-पुण्य; हिजाब: पर्दा, मुखावरण; मुद्द'आ: बिंदु, विषय; ख़ाना-ख़राब: गृह-त्यागी; कम्बख़्त: अभागा; मुफ़लिसी: विपन्नता; बेशक़ीमत: अति-मूल्यवान; तोहफ़:-ए-यारी: मित्रता का उपहार; अज़ाब: पाप का फल।
ये: गुनाहो-सवाब की बातें
आप जो बिन पिए बहकते हैं
क्या सुनें हम जनाब की बातें
उलझे-उलझे सवाल हैं उनके
हम कहें क्या जवाब की बातें
भूल ही जाएं तो बुरा क्या है
सूरतों की हिजाब की बातें
मुद्द'आ मत बनाइए दिल का
एक ख़ाना-ख़राब की बातें
कोई कम्बख़्त ना करे हमसे
मुफ़लिसी में शराब की बातें
बेशक़ीमत है तोहफ़:-ए-यारी
छोड़ दीजे हिसाब की बातें
पी रहे हैं शराब आंखों से
सोचते हैं अज़ाब की बातें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: किताब: धर्म-ग्रंथ, क़ुर'आन; गुनाहो-सवाब: पाप-पुण्य; हिजाब: पर्दा, मुखावरण; मुद्द'आ: बिंदु, विषय; ख़ाना-ख़राब: गृह-त्यागी; कम्बख़्त: अभागा; मुफ़लिसी: विपन्नता; बेशक़ीमत: अति-मूल्यवान; तोहफ़:-ए-यारी: मित्रता का उपहार; अज़ाब: पाप का फल।