ख़ुदा न ख़्वास्ता अपनी पे आ गए होते
बवंडरों की तरह सब पे छा गए होते
तुम्हारा शुक्रिया के: हम से बेनियाज़ रहे
नज़र मिलाते तो दिल में समा गए होते
हमें उम्मीद नहीं ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से कोई
नमाज़ पढ़ते तो तुमको न पा गए होते
हमें ख़ुदाई से परहेज़ है, ग़नीमत है
जुनूँ तो वो: है के: हस्ती मिटा गए होते
समझ सके न कभी अहले सियासत हमको
सुराग़ पाते तो सज्दे में आ गए होते
लोग कहते हैं हमें वारिस-ए-ग़ालिब यूँ ही
काश! उस पीर के शजरे में आ गए होते।
( 2005)