दिल्लगी है तो ये: दिल्लगी ही सही
आज के दिन तुम्हारी ख़ुशी ही सही
हम न छोड़ेंगे दामन ख़ुदा की क़सम
ज़िद हमारी नहीं तो किसी की सही
दिल चुरा लाए हैं बिन कहे आपका
ख़्वाब में एक दिन बदज़नी ही सही
हिज्र ही है इलाजे-ग़मे-दिल अगर
इस मुदावात में बेरुख़ी ही सही
इन्क़िलाबी हवाएं मचलने लगीं
मुल्क में इन दिनों ख़लबली ही सही
दस्तबस्ता खड़े हैं तेरी बज़्म में
इश्क़ हो या न हो बंदगी ही सही
हैं अगरचे ख़फ़ा वो: ग़ज़ल पे मेरी
चंद अल्फ़ाज़ की ख़ुदकुशी ही सही
लौट आए हैं ये: सोच कर ख़ुल्द से
साथ तेरे ज़रा ज़िंदगी ही सही !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दिल्लगी: परिहास; दामन: आंचल, साथ; बदज़नी: बुरा काम; हिज्र: वियोग; इलाजे-ग़मे-दिल: हृदय के दु:ख का उपचार;
मुदावात: चिकित्सा-क्रम; बेरुख़ी: उपेक्षा; इन्क़िलाबी: क्रांतिधर्मा; दस्तबस्ता: कर बद्ध; बज़्म: सभा; बंदगी: भक्ति; अगरचे: यदि कहीं;
ख़फ़ा: रुष्ट; चंद अल्फ़ाज़: कुछ शब्द; ख़ुदकुशी: आत्मनाश; ख़ुल्द: स्वर्ग।
आज के दिन तुम्हारी ख़ुशी ही सही
हम न छोड़ेंगे दामन ख़ुदा की क़सम
ज़िद हमारी नहीं तो किसी की सही
दिल चुरा लाए हैं बिन कहे आपका
ख़्वाब में एक दिन बदज़नी ही सही
हिज्र ही है इलाजे-ग़मे-दिल अगर
इस मुदावात में बेरुख़ी ही सही
इन्क़िलाबी हवाएं मचलने लगीं
मुल्क में इन दिनों ख़लबली ही सही
दस्तबस्ता खड़े हैं तेरी बज़्म में
इश्क़ हो या न हो बंदगी ही सही
हैं अगरचे ख़फ़ा वो: ग़ज़ल पे मेरी
चंद अल्फ़ाज़ की ख़ुदकुशी ही सही
लौट आए हैं ये: सोच कर ख़ुल्द से
साथ तेरे ज़रा ज़िंदगी ही सही !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दिल्लगी: परिहास; दामन: आंचल, साथ; बदज़नी: बुरा काम; हिज्र: वियोग; इलाजे-ग़मे-दिल: हृदय के दु:ख का उपचार;
मुदावात: चिकित्सा-क्रम; बेरुख़ी: उपेक्षा; इन्क़िलाबी: क्रांतिधर्मा; दस्तबस्ता: कर बद्ध; बज़्म: सभा; बंदगी: भक्ति; अगरचे: यदि कहीं;
ख़फ़ा: रुष्ट; चंद अल्फ़ाज़: कुछ शब्द; ख़ुदकुशी: आत्मनाश; ख़ुल्द: स्वर्ग।