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सोमवार, 23 दिसंबर 2013

तेरी क़ुर्बत के लिए ...!

मौत  ने  जीना  हमारा  और  आसां  कर  दिया
फिर  दरे-मेहबूब  पर  सज्दे  का  सामां  कर  दिया

हूं  बहुत  मज़्कूर  मैं  उस  हुस्ने-शामो-सहर   का
जिसने  मेरी  अंजुमन  को  रश्क़े-रिज़्वां  कर  दिया

शुक्रिया  अय  दोस्त  तेरा  रहनुमाई  के  लिए
तूने  मेरी  हर  दुआ  को  गुहरे-मिश्गां  कर  दिया

और  क्या  करते  भला  हम  बंदगी  के  नाम  पर
तेरी  क़ुर्बत  के  लिए  ईमान  क़ुर्बां  कर  दिया

पुर्सिशों  से  ज़ल्ज़ला  सा  आ  गया  घर  में  मेरे
लज़्ज़ते-गिरिय:  ने  हमको  फिर  पशेमां  कर  दिया

फिर  किसी  ने  ख़ुल्द  में  दिल  से  पुकारा  है  हमें
फिर  मेरे  दर्दे-निहां  को  राहते-जां  कर  दिया

बेख़याली  बदगुमानी  बदनसीबी  सब  यहीं
ज़िंदगी  दे  कर  ख़ुदा  ने  ख़ाक  एहसां  कर  दिया  !

                                                                       ( 2013 )

                                                                 -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: आसां: आसान, सरल; दरे-मेहबूब: प्रिय/ईश्वर का द्वार ; सज्दे  का  सामां: पृथ्वी पर सिर झुका कर प्रणाम करने का प्रबंध; 
मज़्कूर: शुक्रगुज़ार, आभारी; हुस्ने-शामो-सहर: संध्या और उषा का सौंदर्य; अंजुमन: सभा; रश्क़े-रिज़्वां: रिज़वान, जन्नत का प्रहरी की ईर्ष्या का कारण; रहनुमाई: मार्गदर्शन; गुहरे-मिश्गां: पलकों के मोती, अश्रु; बंदगी: भक्ति; क़ुर्बत: निकटता;   ईमान: आस्था; क़ुर्बां: बलिदान; पुर्सिश: हाल पूछना;  ज़ल्ज़ला: भूकम्प; लज़्ज़ते-गिरिय: : रोने का आनंद; पशेमां: लज्जित, अवमानित;  ख़ुल्द: स्वर्ग; दर्दे-निहां: अंतर्मन की पीड़ा; राहते-जां: प्राणाधार; बेख़याली: अन्यमनस्कता; बदगुमानी: दूसरों की कु-धारणाएं; बदनसीबी: दुर्भाग्य; 
ख़ाक: व्यर्थ, धूल के समान; एहसां: एहसान, अनुचित कृपा।