बयाज़े-दिल में तेरा नाम दर्ज है जब तक
किसी शुआ की ज़रूरत नहीं हमें तब तक
बड़ा अजीब सफ़र है मेरे तख़य्युल का
शबे-विसाल से आए हैं हिज्र की शब तक
तू अपने सीने की वुस.अत दिखाए जाता है
मगर ये जिस्म तेरे साथ रहेगा कब तक
तेरे निज़ाम में तालीम की वो हालत है
कि कोई तिफ़्ल पहुंच ही न पाए मकतब तक
कहां जनाब तरक़्क़ी की बात करते थे
कहां ये आग चली आ रही है मज़्हब तक
हमीं हैं शाह से खुल कर क़िले लड़ाते हैं
पहुंच गए हैं वहीं सब नक़ीब मंसब तक
फ़िज़ूल आप मेरे दिल पे हो गए क़ाबिज़
अज़ां सुनाई न दी आपको मेरी अब तक !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : बयाज़े-दिल : हृदय की दैनंदिनी ; दर्ज : अंकित ; शुआ : किरण ; तख़य्युल : विचारों , कल्पनाओं ; शबे-विसाल : मिलन निशा ; हिज्र : वियोग ; शब : निशा ; वुस.अत : विस्तार, माप ; जिस्म : शरीर ; निज़ाम : शासन ; तालीम : शिक्षा ; तिफ़्ल : बच्चा ; मकतब : पाठशाला ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; मज़्हब : धर्म ; क़िले : शतरंज के खेल में बनाए जाने वाले क़िले, युद्ध ; नक़ीब : चारण ; मंसब : नियमित वृत्तिका ; फ़िज़ूल : व्यर्थ ; क़ाबिज़ : अधिपति ।
किसी शुआ की ज़रूरत नहीं हमें तब तक
बड़ा अजीब सफ़र है मेरे तख़य्युल का
शबे-विसाल से आए हैं हिज्र की शब तक
तू अपने सीने की वुस.अत दिखाए जाता है
मगर ये जिस्म तेरे साथ रहेगा कब तक
तेरे निज़ाम में तालीम की वो हालत है
कि कोई तिफ़्ल पहुंच ही न पाए मकतब तक
कहां जनाब तरक़्क़ी की बात करते थे
कहां ये आग चली आ रही है मज़्हब तक
हमीं हैं शाह से खुल कर क़िले लड़ाते हैं
पहुंच गए हैं वहीं सब नक़ीब मंसब तक
फ़िज़ूल आप मेरे दिल पे हो गए क़ाबिज़
अज़ां सुनाई न दी आपको मेरी अब तक !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : बयाज़े-दिल : हृदय की दैनंदिनी ; दर्ज : अंकित ; शुआ : किरण ; तख़य्युल : विचारों , कल्पनाओं ; शबे-विसाल : मिलन निशा ; हिज्र : वियोग ; शब : निशा ; वुस.अत : विस्तार, माप ; जिस्म : शरीर ; निज़ाम : शासन ; तालीम : शिक्षा ; तिफ़्ल : बच्चा ; मकतब : पाठशाला ; तरक़्क़ी : प्रगति, विकास ; मज़्हब : धर्म ; क़िले : शतरंज के खेल में बनाए जाने वाले क़िले, युद्ध ; नक़ीब : चारण ; मंसब : नियमित वृत्तिका ; फ़िज़ूल : व्यर्थ ; क़ाबिज़ : अधिपति ।