फ़ासलों से हमें ना डराया करो
फ़र्ज़ है आपका याद आया करो
हो शबे-तार तो रौशनी के लिए
चांदनी की तरह झिलमिलाया करो
रोज़ मिलिए न मिलिए हमें शौक़ से
ईद में तो कभी घर बुलाया करो
बदनसीबी ख़ुशी में बदल जाएगी
रंजो-ग़म में हमें आज़माया करो
ज़ीस्त की जंग में ज़िंदगी कम न हो
रूठने के लिए मान जाया करो
शायरी से अगर आग लगती नहीं
रिज़्क़ के काम में जी लगाया करो
कोई सज्दा नहीं, बुतपरस्ती नहीं
दें अज़ां हम तभी सर झुकाया करो
नेकनीयत नहीं शाह इस दौर का
सौ दफ़ा सोच कर पास जाया करो
एक ही है ख़ुदा, एक ही ख़ानदां
क्यूं किसी ग़ैर का घर जलाया करो ?
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ासलों: अंतरालों, दूरियों; फ़र्ज़ : कर्त्तव्य; शबे-तार: अमावस्या; शौक़: रुचि; बदनसीबी: दुर्भाग्य; रंजो-ग़म: दुःख और शोक; ज़ीस्त: जीवन; जंग: युद्ध; रिज़्क़: भोजन; सज्दा: दंडवत प्रणाम; बुतपरस्ती: मूर्त्ति-पूजा, व्यक्ति-पूजा; नेकनीयतएल सद्भावी; ख़ानदां : कुल, वंश ।
फ़र्ज़ है आपका याद आया करो
हो शबे-तार तो रौशनी के लिए
चांदनी की तरह झिलमिलाया करो
रोज़ मिलिए न मिलिए हमें शौक़ से
ईद में तो कभी घर बुलाया करो
बदनसीबी ख़ुशी में बदल जाएगी
रंजो-ग़म में हमें आज़माया करो
ज़ीस्त की जंग में ज़िंदगी कम न हो
रूठने के लिए मान जाया करो
शायरी से अगर आग लगती नहीं
रिज़्क़ के काम में जी लगाया करो
कोई सज्दा नहीं, बुतपरस्ती नहीं
दें अज़ां हम तभी सर झुकाया करो
नेकनीयत नहीं शाह इस दौर का
सौ दफ़ा सोच कर पास जाया करो
एक ही है ख़ुदा, एक ही ख़ानदां
क्यूं किसी ग़ैर का घर जलाया करो ?
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ासलों: अंतरालों, दूरियों; फ़र्ज़ : कर्त्तव्य; शबे-तार: अमावस्या; शौक़: रुचि; बदनसीबी: दुर्भाग्य; रंजो-ग़म: दुःख और शोक; ज़ीस्त: जीवन; जंग: युद्ध; रिज़्क़: भोजन; सज्दा: दंडवत प्रणाम; बुतपरस्ती: मूर्त्ति-पूजा, व्यक्ति-पूजा; नेकनीयतएल सद्भावी; ख़ानदां : कुल, वंश ।