टूट जाए न दिल दिल्लगी में कहीं
आप संजीदा हों ज़िंदगी में कहीं
हमको ख़ुद से ये: उम्मीद हर्गिज़ न थी
घर लुटा आए बाद:कशी में कहीं
हर शबे-वस्ल में इक नसीहत भी है
दर्द भी है निहां आशिक़ी में कहीं
एक से एक दाना हैं इस बज़्म में
राज़ ज़ाहिर न हो ख़ामुशी में कहीं
आज हैं हम यहां कल गुज़र जाएंगे
आ मिलेंगे कभी ख़्वाब में ही कहीं
मांगते हैं ख़ुदा से दुआ हम यही
अब नज़र आइए आदमी में कहीं
तय है गिरना निगाहों में अल्लाह की
पांव फिसला अगर बे-ख़ुदी में कहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: संजीदा: गंभीर; बाद:कशी:मद्यपान की लत; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; नसीहत: शिक्षा; निहां: छिपा हुआ;
दाना: विद्वान; बज़्म: सभा, गोष्ठी; बे-ख़ुदी: अन्यमनस्कता !
आप संजीदा हों ज़िंदगी में कहीं
हमको ख़ुद से ये: उम्मीद हर्गिज़ न थी
घर लुटा आए बाद:कशी में कहीं
हर शबे-वस्ल में इक नसीहत भी है
दर्द भी है निहां आशिक़ी में कहीं
एक से एक दाना हैं इस बज़्म में
राज़ ज़ाहिर न हो ख़ामुशी में कहीं
आज हैं हम यहां कल गुज़र जाएंगे
आ मिलेंगे कभी ख़्वाब में ही कहीं
मांगते हैं ख़ुदा से दुआ हम यही
अब नज़र आइए आदमी में कहीं
तय है गिरना निगाहों में अल्लाह की
पांव फिसला अगर बे-ख़ुदी में कहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: संजीदा: गंभीर; बाद:कशी:मद्यपान की लत; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; नसीहत: शिक्षा; निहां: छिपा हुआ;
दाना: विद्वान; बज़्म: सभा, गोष्ठी; बे-ख़ुदी: अन्यमनस्कता !