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बुधवार, 22 जून 2016

बग़ावतों की मजाल...

तुम्हारे  चेहरे  पे  जो  ख़ुशी  है  उसे  अज़ल  तक  संभाल  रखना
कि  रंजो-ग़म  में   मुसीबतों  में   हमारा  हक़  भी  बहाल  रखना

तुम्हारा   दावा   बहुत   बड़ा   है   जहाने-दिल  की   हुकूमतों  पर
रहो  हमेशा    उरूज   पर  तुम   मगर  ज़ेहन  में   जवाल  रखना

तुम्हारे  दिल  में    कहां  कमी  है    मुहब्बतों   की    इनायतों  की
जो  बांटो  सदक़ा-ए-फ़ित्र  सबको  हमारा  हिस्सा  निकाल  रखना

अभी   उन्हें   भी    कहां   है   फ़ुर्सत    तमाम   इशरत  बटोरने  से
मगर  वो  आएं  सलाम  को  जब  तो  सामने  सब  सवाल  रखना

निज़ामे-बेहिस    की    दुश्मनी   है   ग़रीब  ग़ुर्बा  की   बेहतरी   से
खुले  ज़ुबां  गर    मुख़ालिफ़त  में    बग़ावतों   की   मजाल  रखना

मिटा    रहे   हैं    वो:   नक़्श    सारी    इमारतों   के     इबारतों   के
चमन  की   रंगत   बदल  न   डाले   ज़रा  हवा  का   ख़याल  रखना

जिए  हो   अब  तक   फ़क़ीर  हो  कर    रहे  सलामत  ये  शाने-ईमां
चलो  जो  मुल्के-अदम  की  जानिब  ख़ुदी  की  क़ायम  मिसाल  रखना !

                                                                                                                     (2016)

                                                                                                              -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अज़ल : अनादि-अनंतकाल ; रंजो-ग़म : अवसाद  एवं दुःख ; मुसीबतों : संकटों ; हक़ : अधिकार ; बहाल : निरंतर, शास्वत ; जहाने-दिल : मन का साम्राज्य ; हुकूमतों : शासनों ;  उरूज : उत्कर्ष, शीर्ष ; ज़ेहन : मस्तिष्क, ध्यान ; जवाल : पतन ; इनायतों : कृपाओं ; सदक़ा-ए-फ़ित्र : उपासना का पुण्य-दान ; इशरत : विलासिताएं ; निज़ामे-बेहिस : संवेदन हीन शासन ; ग़रीब  ग़ुर्बा : दीन-हीन, दरिद्र जन ; बेहतरी : उन्नति ; ज़ुबां : जिव्हा ; गर : यदि ; मुख़ालिफ़त : विरोध ;   बग़ावतों : विद्रोहों ; मजाल : सामर्थ्य ; नक़्श : चिह्न ; इमारतों : भवनों, यहां आशय संस्थानों ; इबारतों : आलेखों, यहां आशय संविधान एवं विधि ; चमन : उपवन ; रंगत : रूप-रंग ; फ़क़ीर : साधु, निर्मोही, अकिंचन ; सलामत : सुरक्षित ; शाने-ईमां ; मुल्के-अदम : परलोक ; जानिब : ओर ; ख़ुदी : स्वाभिमान ; क़ायम : स्थायी ; मिसाल : उदाहरण ।