तुम्हारे चेहरे पे जो ख़ुशी है उसे अज़ल तक संभाल रखना
कि रंजो-ग़म में मुसीबतों में हमारा हक़ भी बहाल रखना
तुम्हारा दावा बहुत बड़ा है जहाने-दिल की हुकूमतों पर
रहो हमेशा उरूज पर तुम मगर ज़ेहन में जवाल रखना
तुम्हारे दिल में कहां कमी है मुहब्बतों की इनायतों की
जो बांटो सदक़ा-ए-फ़ित्र सबको हमारा हिस्सा निकाल रखना
अभी उन्हें भी कहां है फ़ुर्सत तमाम इशरत बटोरने से
मगर वो आएं सलाम को जब तो सामने सब सवाल रखना
निज़ामे-बेहिस की दुश्मनी है ग़रीब ग़ुर्बा की बेहतरी से
खुले ज़ुबां गर मुख़ालिफ़त में बग़ावतों की मजाल रखना
मिटा रहे हैं वो: नक़्श सारी इमारतों के इबारतों के
चमन की रंगत बदल न डाले ज़रा हवा का ख़याल रखना
जिए हो अब तक फ़क़ीर हो कर रहे सलामत ये शाने-ईमां
चलो जो मुल्के-अदम की जानिब ख़ुदी की क़ायम मिसाल रखना !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अज़ल : अनादि-अनंतकाल ; रंजो-ग़म : अवसाद एवं दुःख ; मुसीबतों : संकटों ; हक़ : अधिकार ; बहाल : निरंतर, शास्वत ; जहाने-दिल : मन का साम्राज्य ; हुकूमतों : शासनों ; उरूज : उत्कर्ष, शीर्ष ; ज़ेहन : मस्तिष्क, ध्यान ; जवाल : पतन ; इनायतों : कृपाओं ; सदक़ा-ए-फ़ित्र : उपासना का पुण्य-दान ; इशरत : विलासिताएं ; निज़ामे-बेहिस : संवेदन हीन शासन ; ग़रीब ग़ुर्बा : दीन-हीन, दरिद्र जन ; बेहतरी : उन्नति ; ज़ुबां : जिव्हा ; गर : यदि ; मुख़ालिफ़त : विरोध ; बग़ावतों : विद्रोहों ; मजाल : सामर्थ्य ; नक़्श : चिह्न ; इमारतों : भवनों, यहां आशय संस्थानों ; इबारतों : आलेखों, यहां आशय संविधान एवं विधि ; चमन : उपवन ; रंगत : रूप-रंग ; फ़क़ीर : साधु, निर्मोही, अकिंचन ; सलामत : सुरक्षित ; शाने-ईमां ; मुल्के-अदम : परलोक ; जानिब : ओर ; ख़ुदी : स्वाभिमान ; क़ायम : स्थायी ; मिसाल : उदाहरण ।
कि रंजो-ग़म में मुसीबतों में हमारा हक़ भी बहाल रखना
तुम्हारा दावा बहुत बड़ा है जहाने-दिल की हुकूमतों पर
रहो हमेशा उरूज पर तुम मगर ज़ेहन में जवाल रखना
तुम्हारे दिल में कहां कमी है मुहब्बतों की इनायतों की
जो बांटो सदक़ा-ए-फ़ित्र सबको हमारा हिस्सा निकाल रखना
अभी उन्हें भी कहां है फ़ुर्सत तमाम इशरत बटोरने से
मगर वो आएं सलाम को जब तो सामने सब सवाल रखना
निज़ामे-बेहिस की दुश्मनी है ग़रीब ग़ुर्बा की बेहतरी से
खुले ज़ुबां गर मुख़ालिफ़त में बग़ावतों की मजाल रखना
मिटा रहे हैं वो: नक़्श सारी इमारतों के इबारतों के
चमन की रंगत बदल न डाले ज़रा हवा का ख़याल रखना
जिए हो अब तक फ़क़ीर हो कर रहे सलामत ये शाने-ईमां
चलो जो मुल्के-अदम की जानिब ख़ुदी की क़ायम मिसाल रखना !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अज़ल : अनादि-अनंतकाल ; रंजो-ग़म : अवसाद एवं दुःख ; मुसीबतों : संकटों ; हक़ : अधिकार ; बहाल : निरंतर, शास्वत ; जहाने-दिल : मन का साम्राज्य ; हुकूमतों : शासनों ; उरूज : उत्कर्ष, शीर्ष ; ज़ेहन : मस्तिष्क, ध्यान ; जवाल : पतन ; इनायतों : कृपाओं ; सदक़ा-ए-फ़ित्र : उपासना का पुण्य-दान ; इशरत : विलासिताएं ; निज़ामे-बेहिस : संवेदन हीन शासन ; ग़रीब ग़ुर्बा : दीन-हीन, दरिद्र जन ; बेहतरी : उन्नति ; ज़ुबां : जिव्हा ; गर : यदि ; मुख़ालिफ़त : विरोध ; बग़ावतों : विद्रोहों ; मजाल : सामर्थ्य ; नक़्श : चिह्न ; इमारतों : भवनों, यहां आशय संस्थानों ; इबारतों : आलेखों, यहां आशय संविधान एवं विधि ; चमन : उपवन ; रंगत : रूप-रंग ; फ़क़ीर : साधु, निर्मोही, अकिंचन ; सलामत : सुरक्षित ; शाने-ईमां ; मुल्के-अदम : परलोक ; जानिब : ओर ; ख़ुदी : स्वाभिमान ; क़ायम : स्थायी ; मिसाल : उदाहरण ।