दिल ही न दिया तो क्या देंगे
ज़ाहिर है आप दग़ा देंगे
हम दीवाने हो भी जाएं
क्या घर को आग लगा देंगे ?
सब नफ़रत अपनी ले आएं
हम सबको प्यार सिखा देंगे
ख़ामोश मुहब्बत है अपनी
वो पूछें तो बतला देंगे
नाजायज़ डर भी जायज़ है
वैसे भी वो झुटला देंगे
मुंसिफ़ ख़ुद दिल के काले हैं
मुजरिम को ख़ाक सज़ा देंगे
आ जाए ख़ुदा दफ़्तर ले कर
हम सारे क़र्ज़ चुका देंगे !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : ज़ाहिर : स्पष्ट; दग़ा : छल; नफ़रत : घृणा; ख़ामोश : मूक; नाजायज़ : अवैध, अनुचित; जायज़ : वैध; मुंसिफ़ : न्यायाधीश;
मुजरिम : अपराधी; ख़ाक : न कुछ, नाम मात्र; सज़ा : दंड; दफ़्तर : खाता-बही; क़र्ज़ : ऋण।
ज़ाहिर है आप दग़ा देंगे
हम दीवाने हो भी जाएं
क्या घर को आग लगा देंगे ?
सब नफ़रत अपनी ले आएं
हम सबको प्यार सिखा देंगे
ख़ामोश मुहब्बत है अपनी
वो पूछें तो बतला देंगे
नाजायज़ डर भी जायज़ है
वैसे भी वो झुटला देंगे
मुंसिफ़ ख़ुद दिल के काले हैं
मुजरिम को ख़ाक सज़ा देंगे
आ जाए ख़ुदा दफ़्तर ले कर
हम सारे क़र्ज़ चुका देंगे !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : ज़ाहिर : स्पष्ट; दग़ा : छल; नफ़रत : घृणा; ख़ामोश : मूक; नाजायज़ : अवैध, अनुचित; जायज़ : वैध; मुंसिफ़ : न्यायाधीश;
मुजरिम : अपराधी; ख़ाक : न कुछ, नाम मात्र; सज़ा : दंड; दफ़्तर : खाता-बही; क़र्ज़ : ऋण।
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