हो चुकी तकरीर वापस जाएं हम
या तुम्हें घर छोड़ कर भी आएं हम
तख़्ते-शाही तक उन्हें पहुंचाएं हम
और फिर ताज़िंदगी पछताएं हम
छोड़ कर जम्हूरियत के हक़ सभी
ताजदारों की अना सहलाएं हम
मुफ़लिसी की मार इतनी भी नहीं
आपके इजलास में झुक जाएं हम
दाल कल से आज सस्ती ही सही
जेब में धेला नहीं क्या खाएं हम
दर्द अपने साथ ले कर आइए
आपको दिल में कहीं बैठाएं हम
एक चादर में हज़ारों ख़्वाहिशें
पांव अपने किस तरह फैलाएं हम ?!
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तकरीर:भाषण; तख़्ते-शाही: राज-सिंहासन; ताज़िंदगी: सारी आयु, आजीवन; जम्हूरियत: लोकतंत्र; हक़:अधिकार; ताजदारों:मुकुट-धारियों, सत्ताधीशों; अना: अहंकार; मुफ़लिसी: निर्धनता; इजलास: राजसभा; धेला: भारत में 19वीं शताब्दी तक प्रचलित मुद्रा की सबसे छोटी इकाई, आधा पैसा; ख़्वाहिशें: इच्छाएं ।
या तुम्हें घर छोड़ कर भी आएं हम
तख़्ते-शाही तक उन्हें पहुंचाएं हम
और फिर ताज़िंदगी पछताएं हम
छोड़ कर जम्हूरियत के हक़ सभी
ताजदारों की अना सहलाएं हम
मुफ़लिसी की मार इतनी भी नहीं
आपके इजलास में झुक जाएं हम
दाल कल से आज सस्ती ही सही
जेब में धेला नहीं क्या खाएं हम
दर्द अपने साथ ले कर आइए
आपको दिल में कहीं बैठाएं हम
एक चादर में हज़ारों ख़्वाहिशें
पांव अपने किस तरह फैलाएं हम ?!
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तकरीर:भाषण; तख़्ते-शाही: राज-सिंहासन; ताज़िंदगी: सारी आयु, आजीवन; जम्हूरियत: लोकतंत्र; हक़:अधिकार; ताजदारों:मुकुट-धारियों, सत्ताधीशों; अना: अहंकार; मुफ़लिसी: निर्धनता; इजलास: राजसभा; धेला: भारत में 19वीं शताब्दी तक प्रचलित मुद्रा की सबसे छोटी इकाई, आधा पैसा; ख़्वाहिशें: इच्छाएं ।
बेहतरीन ग़ज़ल।बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंsundar .......
जवाब देंहटाएंsundar .......
जवाब देंहटाएं