रग़ों में अब लहू की रफ़्त कम है
कि हममें आजकल कुछ ज़ब्त कम है
मिला है मुल्क को नायाब राजा
चुग़द ज़्यादह मगर बदबख़्त कम है
न जाने किस तरह ग़ुंचे खिलेंगे
इधर बादे-सबा की गश्त कम है
न आओ गर तुम्हें फ़ुरसत नहीं है
हमारे पास भी तो वक़्त कम है
हमीं बेहतर ख़ुदा के आशिक़ों में
इबादत में हमारी ख़ब्त कम है
बुलाने को बुला तो लें ख़ुदा को
मगर उनसे हमारा रब्त कम है
हुई हों ग़लतियां हमसे हज़ारों
गुनाहे-ज़ीस्त में तो दस्त कम है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रग़ों: रक्त-वाहिनियों; लहू : रक्त; रफ़्त:गति; ज़ब्त:सहिष्णुता; नायाब: दुर्लभ; चुग़द:मूढ़, उलूक, मंदबुद्धि; बदबख़्त: अभागा;
ग़ुंचे: कलिकाएं; बादे-सबा: प्रातःसमीर; गश्त: आवागमन; गर:यदि; हमीं:हम ही; बेहतर : अधिक श्रेष्ठ; इबादत:पूजा; ख़ब्त :मनोविकार; उन्मत्तता; रब्त:संपर्क, परिचय; गुनाहे-ज़ीस्त :जन्म लेने का अपराध, जीवनापराध; दस्त:हाथ, हस्त।
कि हममें आजकल कुछ ज़ब्त कम है
मिला है मुल्क को नायाब राजा
चुग़द ज़्यादह मगर बदबख़्त कम है
न जाने किस तरह ग़ुंचे खिलेंगे
इधर बादे-सबा की गश्त कम है
न आओ गर तुम्हें फ़ुरसत नहीं है
हमारे पास भी तो वक़्त कम है
हमीं बेहतर ख़ुदा के आशिक़ों में
इबादत में हमारी ख़ब्त कम है
बुलाने को बुला तो लें ख़ुदा को
मगर उनसे हमारा रब्त कम है
हुई हों ग़लतियां हमसे हज़ारों
गुनाहे-ज़ीस्त में तो दस्त कम है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रग़ों: रक्त-वाहिनियों; लहू : रक्त; रफ़्त:गति; ज़ब्त:सहिष्णुता; नायाब: दुर्लभ; चुग़द:मूढ़, उलूक, मंदबुद्धि; बदबख़्त: अभागा;
ग़ुंचे: कलिकाएं; बादे-सबा: प्रातःसमीर; गश्त: आवागमन; गर:यदि; हमीं:हम ही; बेहतर : अधिक श्रेष्ठ; इबादत:पूजा; ख़ब्त :मनोविकार; उन्मत्तता; रब्त:संपर्क, परिचय; गुनाहे-ज़ीस्त :जन्म लेने का अपराध, जीवनापराध; दस्त:हाथ, हस्त।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3 - 12 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2179 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद