ख़ुद को आतिश-फ़िशां समझते हो
आबलों की ज़ुबां समझते हो ?
चंद सरमाएदार चोरों को
आप हिन्दोस्तां समझते हो ?
है ग़ज़ब आपकी समझदारी
शाह को मेह्रबां समझते हो !
ग़ैब से 'मन की बात' कहते हो
मुफ़लिसी के निशां समझते हो ?
हर तरफ़ मार-काट, बदअमनी
क्या इसी को अमां समझते हो ?
हफ़्त-रोज़ा जुदाई है, मोहसिन
क्यूं इसे इम्तिहां समझते हो ?!
हम बसे हैं हुज़ूर के दिल में
आप जाने कहां समझते हो !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आतिश-फ़िशां:ज्वालामुखी; आबलों : छालों; ज़ुबां : भाषा; चंद : कुछ, चार; सरमाएदार : पूंजीपति; ग़ज़ब : विचित्र; मेह्रबां : कृपालु; ग़ैब : अदृश्य स्थान, आकाश; मुफ़लिसी : निर्धनता, वंचन; निशां : चिह्न ; बदअमनी : अशांति; अमां:सुरक्षा; हफ़्त-रोज़ा : सप्त-दिवसीय; जुदाई:वियोग; इम्तिहां : परीक्षा;
आबलों की ज़ुबां समझते हो ?
चंद सरमाएदार चोरों को
आप हिन्दोस्तां समझते हो ?
है ग़ज़ब आपकी समझदारी
शाह को मेह्रबां समझते हो !
ग़ैब से 'मन की बात' कहते हो
मुफ़लिसी के निशां समझते हो ?
हर तरफ़ मार-काट, बदअमनी
क्या इसी को अमां समझते हो ?
हफ़्त-रोज़ा जुदाई है, मोहसिन
क्यूं इसे इम्तिहां समझते हो ?!
हम बसे हैं हुज़ूर के दिल में
आप जाने कहां समझते हो !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आतिश-फ़िशां:ज्वालामुखी; आबलों : छालों; ज़ुबां : भाषा; चंद : कुछ, चार; सरमाएदार : पूंजीपति; ग़ज़ब : विचित्र; मेह्रबां : कृपालु; ग़ैब : अदृश्य स्थान, आकाश; मुफ़लिसी : निर्धनता, वंचन; निशां : चिह्न ; बदअमनी : अशांति; अमां:सुरक्षा; हफ़्त-रोज़ा : सप्त-दिवसीय; जुदाई:वियोग; इम्तिहां : परीक्षा;
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