हर शख़्स उमीदों का धुवां देख रहा है
तू शाहे-बेईमान ! कहां देख रहा है ?
बुलबुल भी जानता है क़ह्र टूटने को है
सय्याद अभी तीरो-कमां देख रहा है
अय रश्क़े-माहताब ! दुआ दे ग़रीब को
मासूम-सा चराग़ यहां देख रहा है
खुलता है जहां बाम वहीं दूर पर कहीं
कुछ है कि जिसे शाहजहां देख रहा है
जिसका है इंतज़ार अभी आपको यहां
शायद वो कहीं और मकां देख रहा है
जो तुमने गंवाया है तुम्हीं जानते हो दोस्त
जो हमने कमाया है जहां देख रहा है
वो भी है बे-क़रार नई ख़ल्क़ के लिए
बर्बाद गुलिस्तां के निशां देख रहा है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शख़्स: व्यक्ति; शाहे-बेईमान : निष्ठाहीनों का राजा; क़ह्र: विपत्ति; सय्याद:बहेलिया; तीरो-कमां: बाण और धनुष; अय : ए, हे (संबोधन); रश्क़े-माहताब: चंद्रमा की ईर्ष्या का पात्र; दुआ:शुभकामना; मासूम:अबोध, नन्हा; चराग़: दीपक; बाम: गवाक्ष; कुछ: यहां ताजमहल, शाहजहां को उसके पुत्र औरंगज़ेब ने आगरा के लाल क़िले में बंदी बना कर रखा, उस कक्ष के एक गवाक्ष से ताजमहल दिखाई देता है; मकां: आवास; बे-क़रार:आतुर, विचलित; ख़ल्क़: सृष्टि; बर्बाद गुलिस्तां: ध्वस्त उपवन; निशां: चिह्न ।
तू शाहे-बेईमान ! कहां देख रहा है ?
बुलबुल भी जानता है क़ह्र टूटने को है
सय्याद अभी तीरो-कमां देख रहा है
अय रश्क़े-माहताब ! दुआ दे ग़रीब को
मासूम-सा चराग़ यहां देख रहा है
खुलता है जहां बाम वहीं दूर पर कहीं
कुछ है कि जिसे शाहजहां देख रहा है
जिसका है इंतज़ार अभी आपको यहां
शायद वो कहीं और मकां देख रहा है
जो तुमने गंवाया है तुम्हीं जानते हो दोस्त
जो हमने कमाया है जहां देख रहा है
वो भी है बे-क़रार नई ख़ल्क़ के लिए
बर्बाद गुलिस्तां के निशां देख रहा है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शख़्स: व्यक्ति; शाहे-बेईमान : निष्ठाहीनों का राजा; क़ह्र: विपत्ति; सय्याद:बहेलिया; तीरो-कमां: बाण और धनुष; अय : ए, हे (संबोधन); रश्क़े-माहताब: चंद्रमा की ईर्ष्या का पात्र; दुआ:शुभकामना; मासूम:अबोध, नन्हा; चराग़: दीपक; बाम: गवाक्ष; कुछ: यहां ताजमहल, शाहजहां को उसके पुत्र औरंगज़ेब ने आगरा के लाल क़िले में बंदी बना कर रखा, उस कक्ष के एक गवाक्ष से ताजमहल दिखाई देता है; मकां: आवास; बे-क़रार:आतुर, विचलित; ख़ल्क़: सृष्टि; बर्बाद गुलिस्तां: ध्वस्त उपवन; निशां: चिह्न ।
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