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गुरुवार, 19 नवंबर 2015

अदना-सा आदमी...

जो   शख़्स    गए   दौर    तुम्हारे   क़रीब   था
वो     ऐतबारे-दिल   से    निहायत  ग़रीब  था

दुश्मन   न   था   हसीन  था   तस्वीरबाश  था
ये    और   बात   है   कि   हमारा    रक़ीब  था

बेशक़   वो   आज  एक   गुज़िश्ता  ख़याल  है
गो    एक  दौर   में  वो  बहुत  ख़ुशनसीब  था

अच्छा-बुरा    अज़ीमो-ख़्वार    आप  सोचिए
क़िस्सा-कोताह    ये  कि  वो  मेरा  हबीब  था

क्या  ख़ाक   सरफ़रोश  हुए   ये  मुजाहिदीन
मंसूर  तो  ख़ुदा  की  क़सम  ख़ुद  सलीब  था

तारीख़   के    सीने   में    कई   इन्क़लाब  हैं
सय्याद   के   मुक़ाबिल   जब   अंदलीब  था

लेटे  थे  क़ब्र  में  कि  सुनी  आपकी   ख़ेराज
'अदना-सा  आदमी  था,  सुना  है  अदीब  था !'

                                                                                     (2015)

                                                                             -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: शख़्स: व्यक्ति; गए  दौर:अतीत में; ऐतबारे-दिल: मन के संदर्भ में; निहायत:अत्यंत; हसीन:सुंदर; तस्वीरबाश: चित्रों में दिखाई पड़ने वाला, चित्र-प्रेमी; रक़ीब:प्रतिद्वंद्वी; बेशक़: निस्संदेह; गुज़िश्ता  ख़याल: बीती बात; दौर: काल-खंड; ख़ुशनसीब: सौभाग्यशाली;   अज़ीमो-ख़्वार: महान और पतित; क़िस्सा-कोताह: कथा-सार; हबीब: प्रिय, प्रेमी; ख़ाक: धूल समान; सरफ़रोश: शीश लुटाने वाले, बलिदानी; मुजाहिदीन: 'धर्म-योद्धा'; मंसूर: हज़रत मंसूर अ.स., इस्लाम के प्रख्यात अद्वैतवादी, जिन्हें 'अनलहक़' ('अहं ब्रह्मास्मि') कहने के अपराध में सूली पर चढ़ा दिया गया था; सलीब: सूली; तारीख़: इतिहास; इन्क़लाब: क्रांति; सय्याद: बहेलिया;   मुक़ाबिल: सम्मुख; अंदलीब: बुलबुल या मैना; ख़ेराज: उद् गार; अदना: लघु, साधारण; अदीब: साहित्यकार ।

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