बुरा वक़्त है ज़ब्त करना पड़ेगा
अना को कई बार मरना पड़ेगा
यहां ज़ुल्म की आंधियां चल रही हैं
सबा-ए-सुख़न को ठहरना पड़ेगा
हवा को मुआफ़िक़ बनाने की ज़िद में
कड़े इम्तिहां से गुज़रना पड़ेगा
सियासत के अंदाज़ से लग रहा है
कि लुच्चे-लफ़ंगों से डरना पड़ेगा
जलेगी शम्'.अ इल्म की जब दिलों में
निज़ामे-कुहन को बिखरना पड़ेगा
रिआया अगर उठ खड़ी हो किसी दिन
तो हर हुक्मरां को सुधरना पड़ेगा
हमीं ने ख़रों को हुकूमत थमाई
हमीं को ये ख़मियाज़: भरना पड़ेगा
मिरे सब्र की इंतेहा गर हुई तो
ख़ुदा को ज़मीं पर उतरना पड़ेगा !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ब्त: सहन; अना: अस्मिता; ज़ुल्म: अत्याचार; सृजन की शीतल पवन; मुआफ़िक़:अपने योग्य; इम्तिहां:परीक्षा; सियासत:राजनीति; अंदाज़: शैली, हाव-भाव; लुच्चे-लफ़ंगों: दुश्चरित्र उपद्रवियों; शम्'.अ: लौ; इल्म:ज्ञान, शिक्षा, बोध; निज़ामे-कुहन: अंधकार का साम्राज्य; रिआया: शासित समूह, सामान्य नागरिक; हुक्मरां: शासक, अधिकारी; ख़रों: गधों; हुकूमत:शासन; ख़मियाज़: :क्षति-पूर्त्ति; सब्र: धैर्य; इंतेहा: अति; गर: यदि ।
अना को कई बार मरना पड़ेगा
यहां ज़ुल्म की आंधियां चल रही हैं
सबा-ए-सुख़न को ठहरना पड़ेगा
हवा को मुआफ़िक़ बनाने की ज़िद में
कड़े इम्तिहां से गुज़रना पड़ेगा
सियासत के अंदाज़ से लग रहा है
कि लुच्चे-लफ़ंगों से डरना पड़ेगा
जलेगी शम्'.अ इल्म की जब दिलों में
निज़ामे-कुहन को बिखरना पड़ेगा
रिआया अगर उठ खड़ी हो किसी दिन
तो हर हुक्मरां को सुधरना पड़ेगा
हमीं ने ख़रों को हुकूमत थमाई
हमीं को ये ख़मियाज़: भरना पड़ेगा
मिरे सब्र की इंतेहा गर हुई तो
ख़ुदा को ज़मीं पर उतरना पड़ेगा !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ब्त: सहन; अना: अस्मिता; ज़ुल्म: अत्याचार; सृजन की शीतल पवन; मुआफ़िक़:अपने योग्य; इम्तिहां:परीक्षा; सियासत:राजनीति; अंदाज़: शैली, हाव-भाव; लुच्चे-लफ़ंगों: दुश्चरित्र उपद्रवियों; शम्'.अ: लौ; इल्म:ज्ञान, शिक्षा, बोध; निज़ामे-कुहन: अंधकार का साम्राज्य; रिआया: शासित समूह, सामान्य नागरिक; हुक्मरां: शासक, अधिकारी; ख़रों: गधों; हुकूमत:शासन; ख़मियाज़: :क्षति-पूर्त्ति; सब्र: धैर्य; इंतेहा: अति; गर: यदि ।
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