आंखों से जब हटेगा पर्दा ग़ुरूर का
देखेंगे रंग होगा कैसा हुज़ूर का
है शाह या मदारी ख़ुद फ़ैसला करें
दुनिया सुना रही है क़िस्सा शुऊर का
सरमाएदार अपना घर भूल जाएंगे
हाथों में आ गया गर जूता मज़ूर का
मुजरिम सफ़ाई दे कर बेचैन है बहुत
दिल पर पड़ा हुआ है साया क़ुसूर का
लाशा चला नहीं है मैदान से अभी
घर पर लगा हुआ है मजमा तुयूर का
नाराज़ हैं ख़ुदा से मुफ़्ती-ओ-मौलवी
मंज़ूर हो गया फिर सज्दा गयूर का
आए हैं तूर पर हम इस एतबार से
देखेंगे आज हम भी जल्वा ज़ुहूर का !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ुरूर:घमंड; हुज़ूर:श्रीमान, मालिक; शुऊर:ढंग, आचरण-शैली; सरमाएदार:पूंजीपति; मज़ूर:श्रमिक, मज़दूर; मुजरिम:अपराधी; सफ़ाई:स्पष्टीकरण; साया: छाया; क़ुसूर:दोष; लाशा:शव; मैदान:रणभूमि; मजमा : झुंड, भीड़; तुयूर:पक्षियों; मुफ़्ती-ओ-मौलवी: धर्माचार्य और धार्मिक शिक्षक; मंज़ूर: स्वीकार; सज्दा:आपादमस्तक प्रणाम; गयूर:स्वाभिमानी व्यक्ति; तूर:मिथकीयपर्वत, काला पहाड़, जहां हज़रत मूसा अ.स. को ईश्वर की झलक दिखाई दी थी; एतबार: विश्वास; जल्वा:दृश्य; ज़ुहूर: (ईश्वर का) प्रकट होना ।
देखेंगे रंग होगा कैसा हुज़ूर का
है शाह या मदारी ख़ुद फ़ैसला करें
दुनिया सुना रही है क़िस्सा शुऊर का
सरमाएदार अपना घर भूल जाएंगे
हाथों में आ गया गर जूता मज़ूर का
मुजरिम सफ़ाई दे कर बेचैन है बहुत
दिल पर पड़ा हुआ है साया क़ुसूर का
लाशा चला नहीं है मैदान से अभी
घर पर लगा हुआ है मजमा तुयूर का
नाराज़ हैं ख़ुदा से मुफ़्ती-ओ-मौलवी
मंज़ूर हो गया फिर सज्दा गयूर का
आए हैं तूर पर हम इस एतबार से
देखेंगे आज हम भी जल्वा ज़ुहूर का !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ुरूर:घमंड; हुज़ूर:श्रीमान, मालिक; शुऊर:ढंग, आचरण-शैली; सरमाएदार:पूंजीपति; मज़ूर:श्रमिक, मज़दूर; मुजरिम:अपराधी; सफ़ाई:स्पष्टीकरण; साया: छाया; क़ुसूर:दोष; लाशा:शव; मैदान:रणभूमि; मजमा : झुंड, भीड़; तुयूर:पक्षियों; मुफ़्ती-ओ-मौलवी: धर्माचार्य और धार्मिक शिक्षक; मंज़ूर: स्वीकार; सज्दा:आपादमस्तक प्रणाम; गयूर:स्वाभिमानी व्यक्ति; तूर:मिथकीयपर्वत, काला पहाड़, जहां हज़रत मूसा अ.स. को ईश्वर की झलक दिखाई दी थी; एतबार: विश्वास; जल्वा:दृश्य; ज़ुहूर: (ईश्वर का) प्रकट होना ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंचर्चा - 2123 में दिया जाएगा
धन्यवाद