सामने सिर्फ़ अपना क़द रक्खे
कौन उस ज़ार पर अहद रक्खे
वो नहीं ऐतिबार के क़ाबिल
जो ज़ुबां पर फ़क़त शहद रक्खे
एक पुरसाने-हाल तो आए
हैं पड़े दश्त में रसद रक्खे
महफ़िले-शौक़ में न आ पाए
हुस्न पर जो निगाहे-बद रक्खे
उसको ख़्वाबों से दूर ही रखिए
जो किसी ख़्वाब से हसद रक्खे
यार कीजे उसी फ़रिश्ते को
जो नज़र में न ख़ालो-ख़द रक्खे
कामरां इश्क़ में वही होगा
दिल जो बस, एक ही अदद रक्खे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़द:आकार; ज़ार:जन-विरोधी, अत्याचारी शासक; अहद:संकल्प; ऐतिबार:विश्वास; क़ाबिल: योग्य; फ़क़त:केवल; पुरसाने-हाल:हाल पूछने वाला; दश्त:वन; रसद:मार्ग में जीवन-यापन की सामग्री; महफ़िले-शौक़:सुरुचिपूर्ण सभा, काव्य या कला-गोष्ठी आदि; निगाहे-बद:कुदृष्टि; हसद:ईर्ष्या; यार:संगी, निकट मित्र; फ़रिश्ते:देवदूत; ख़ालो-ख़द:शारीरिक विशेषताएं, रंग-रूप; कामरां:विजेता, सफल; अदद: नग।
कौन उस ज़ार पर अहद रक्खे
वो नहीं ऐतिबार के क़ाबिल
जो ज़ुबां पर फ़क़त शहद रक्खे
एक पुरसाने-हाल तो आए
हैं पड़े दश्त में रसद रक्खे
महफ़िले-शौक़ में न आ पाए
हुस्न पर जो निगाहे-बद रक्खे
उसको ख़्वाबों से दूर ही रखिए
जो किसी ख़्वाब से हसद रक्खे
यार कीजे उसी फ़रिश्ते को
जो नज़र में न ख़ालो-ख़द रक्खे
कामरां इश्क़ में वही होगा
दिल जो बस, एक ही अदद रक्खे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़द:आकार; ज़ार:जन-विरोधी, अत्याचारी शासक; अहद:संकल्प; ऐतिबार:विश्वास; क़ाबिल: योग्य; फ़क़त:केवल; पुरसाने-हाल:हाल पूछने वाला; दश्त:वन; रसद:मार्ग में जीवन-यापन की सामग्री; महफ़िले-शौक़:सुरुचिपूर्ण सभा, काव्य या कला-गोष्ठी आदि; निगाहे-बद:कुदृष्टि; हसद:ईर्ष्या; यार:संगी, निकट मित्र; फ़रिश्ते:देवदूत; ख़ालो-ख़द:शारीरिक विशेषताएं, रंग-रूप; कामरां:विजेता, सफल; अदद: नग।
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