अजब रंग है आपकी दोस्ती का
कि एहसास होने लगे बेबसी का
शबे-वस्ल तो बख़्श दीजे ख़ुदारा
ये मौक़ा नहीं है मियां दिल्लगी का
सिकुड़ना सिमटना कहां तक चलेगा
तलाशा करें कोई लम्हा ख़ुशी का
परेशान हैं लोग मेंहगाइयों से
इरादा न करने लगें ख़ुदकुशी का
क़सब गर करे ज़िंदगी की हिमायत
निकल जाएगा दम यूंही आदमी का
पढ़ें आप जुगराफ़िया जब वफ़ा का
पता ढूंढ लीजे हमारी गली का
कभी रूह से पूछ कर देखिएगा
कि क्या राज़ है आपकी बदज़नी का
किसी रोज़ दिल में उतर आइएगा
तो ख़ुद देख लीजे करिश्मा ख़ुदी का !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसास: अनुभूति; बेबसी:विवशता; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; बख़्श: छोड़; ख़ुदारा: ख़ुदा/ईश्वर के लिए; दिल्लगी: हास-परिहास; लम्हा: क्षण; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; क़सब: वधिक; हिमायत: सुरक्षा; जुगराफ़िया: भूगोल; वफ़ा: निष्ठा; बदज़नी: दुराचारी प्रवृत्ति; करिश्मा: चमत्कार, स्व-निर्मित व्यक्तित्व, स्वाभिमान।
कि एहसास होने लगे बेबसी का
शबे-वस्ल तो बख़्श दीजे ख़ुदारा
ये मौक़ा नहीं है मियां दिल्लगी का
सिकुड़ना सिमटना कहां तक चलेगा
तलाशा करें कोई लम्हा ख़ुशी का
परेशान हैं लोग मेंहगाइयों से
इरादा न करने लगें ख़ुदकुशी का
क़सब गर करे ज़िंदगी की हिमायत
निकल जाएगा दम यूंही आदमी का
पढ़ें आप जुगराफ़िया जब वफ़ा का
पता ढूंढ लीजे हमारी गली का
कभी रूह से पूछ कर देखिएगा
कि क्या राज़ है आपकी बदज़नी का
किसी रोज़ दिल में उतर आइएगा
तो ख़ुद देख लीजे करिश्मा ख़ुदी का !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसास: अनुभूति; बेबसी:विवशता; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; बख़्श: छोड़; ख़ुदारा: ख़ुदा/ईश्वर के लिए; दिल्लगी: हास-परिहास; लम्हा: क्षण; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; क़सब: वधिक; हिमायत: सुरक्षा; जुगराफ़िया: भूगोल; वफ़ा: निष्ठा; बदज़नी: दुराचारी प्रवृत्ति; करिश्मा: चमत्कार, स्व-निर्मित व्यक्तित्व, स्वाभिमान।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 08 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल!
जवाब देंहटाएं