सियासत की ख़बर अच्छी नहीं है
कहानी मुख़्तसर अच्छी नहीं है
यहां आ जाओ तो बेहतर रहेगा
वहां शामो-सह्र अच्छी नहीं है
तवज्जो तरबियत पर दें ज़रा सी
मुहब्बत को उम्र अच्छी नहीं है
कभी तो दोस्तों की बात सुन लें
बहस हर बात पर अच्छी नहीं है
अगर कुछ कर सकें तो कर दिखाएं
शिकायत दर - ब - दर अच्छी नहीं है
कड़े दिन हैं, मियां ! टोपी लगा लें
फ़रिश्तों की नज़र अच्छी नहीं है
हंसें या रोएं अब इस बात पर हम
ग़ज़ल उम्दा मगर अच्छी नहीं है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुख़्तसर: संक्षेप में; शामो-सह्र: संध्या और प्रातः; तवज्जो:ध्यान; तरबियत: शिक्षा-दीक्षा, संस्कार; फ़रिश्तों: देवदूतों ।
कहानी मुख़्तसर अच्छी नहीं है
यहां आ जाओ तो बेहतर रहेगा
वहां शामो-सह्र अच्छी नहीं है
तवज्जो तरबियत पर दें ज़रा सी
मुहब्बत को उम्र अच्छी नहीं है
कभी तो दोस्तों की बात सुन लें
बहस हर बात पर अच्छी नहीं है
अगर कुछ कर सकें तो कर दिखाएं
शिकायत दर - ब - दर अच्छी नहीं है
कड़े दिन हैं, मियां ! टोपी लगा लें
फ़रिश्तों की नज़र अच्छी नहीं है
हंसें या रोएं अब इस बात पर हम
ग़ज़ल उम्दा मगर अच्छी नहीं है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुख़्तसर: संक्षेप में; शामो-सह्र: संध्या और प्रातः; तवज्जो:ध्यान; तरबियत: शिक्षा-दीक्षा, संस्कार; फ़रिश्तों: देवदूतों ।
कड़े दिन हैं, मियां ! टोपी लगा लें
जवाब देंहटाएंफ़रिश्तों की नज़र अच्छी नहीं है.
यह तो सही कहा सुरेश जी.