हम नहीं ऐतबार के क़ाबिल
क़त्ल के रोज़गार के क़ाबिल
पूछती हैं हवाएं मौसम से
क्या शह्र हैं बहार के क़ाबिल
सच यही है कि आप भी कब हैं
दोस्तों में शुमार के क़ाबिल
मुंतख़ब कर लिया जिसे तुमने
वो: नहीं इक़्तिदार के क़ाबिल
जिस्मे-हिन्दोस्तान कहता है
दिल नहीं अब दरार के क़ाबिल
यूं तजुर्बा-ए-इश्क़ अच्छा है
पर नहीं बार-बार के क़ाबिल
देख लें आप भी अज़ां दे कर
गर ख़ुदा हो पुकार के क़ाबिल !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ऐतबार:विश्वास; क़ाबिल: योग्य; क़त्ल:हत्या; रोज़गार: व्यवसाय; शह्र: नगर; बहार : बसंत; शुमार: गणना; मुंतख़ब:निर्वाचित; इक़्तिदार:सत्ता, शासन चलाना; जिस्मे-हिन्दोस्तान: भारत का शरीर, दरार:संधि; तजुर्बा-ए-इश्क़: प्रेम का प्रयोग; पुकार:आव्हान।
क़त्ल के रोज़गार के क़ाबिल
पूछती हैं हवाएं मौसम से
क्या शह्र हैं बहार के क़ाबिल
सच यही है कि आप भी कब हैं
दोस्तों में शुमार के क़ाबिल
मुंतख़ब कर लिया जिसे तुमने
वो: नहीं इक़्तिदार के क़ाबिल
जिस्मे-हिन्दोस्तान कहता है
दिल नहीं अब दरार के क़ाबिल
यूं तजुर्बा-ए-इश्क़ अच्छा है
पर नहीं बार-बार के क़ाबिल
देख लें आप भी अज़ां दे कर
गर ख़ुदा हो पुकार के क़ाबिल !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ऐतबार:विश्वास; क़ाबिल: योग्य; क़त्ल:हत्या; रोज़गार: व्यवसाय; शह्र: नगर; बहार : बसंत; शुमार: गणना; मुंतख़ब:निर्वाचित; इक़्तिदार:सत्ता, शासन चलाना; जिस्मे-हिन्दोस्तान: भारत का शरीर, दरार:संधि; तजुर्बा-ए-इश्क़: प्रेम का प्रयोग; पुकार:आव्हान।
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