अय हमसुख़न वफ़ा का तकाज़ा है अब यही
हर ज़ोर-ज़ुल्म के बरक्स सर उठा के जी
मुफ़्ती - ओ - मौलवी -ओ- बरहमन बुरे नहीं
लेकिन जो दिल दिखाए वही राह है सही
इबरत हमें मिली है तजुर्बाते - ज़ीस्त से
करती है जी ख़राब तमन्ना कभी-कभी
दिल में हज़ार दाग़ छुपा कर जिया किए
इल्ज़ाम दें किसे कि तलाफ़ी न हो सकी
तकरीरे - रहबरां में बला की थी गर्मियां
अफ़सोस ! मगर भूख कहीं मुद्द'आ न थी
सरकार की नज़र में इबादत गुनाह थी
फिर काफ़िरों ने पाई सज़ा किस क़ुसूर की
सामान मिरे क़त्ल का तैयार कर लिया
हुक्काम को ख़ुदा से इजाज़त न मिल सकी !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
(मशहूर पाकिस्तानी शायर जनाब नासिर काज़मी साहब मरहूम की ज़मीन, ' अय हमसुख़न वफ़ा का तकाज़ा है अब यही' पर कही हुई ग़ज़ल)
शब्दार्थ: हमसुख़न: समान मत रखने वाले; वफ़ा: आस्था; तकाज़ा: आग्रह; ज़ोर-ज़ुल्म: अन्याय और अत्याचार; बरक्स: समक्ष; मुफ़्ती: धार्मिक मामलों में राय देने वाले, मौलवी: धर्म-ग्रंथ पढ़ाने वाले; बरहमन: ब्राह्मण, ब्रह्म-ज्ञानी; इबरत: सीख, शिक्षा; तजुर्बाते - ज़ीस्त: जीवन के अनुभव; जी: मन; तमन्ना: अभिलाषा; दाग़: दोष; इल्ज़ाम: आरोप; तलाफ़ी: पाप-मुक्ति; तकरीरे - रहबरां: नेताओं के भाषण; बला: अत्यधिक; गर्मियां: ऊर्जाएं; अफ़सोस: खेद; मुद्द'आ: विचार का विषय; इबादत: पूजा-प्रार्थना; गुनाह: अपराध; काफ़िरों: नास्तिकों; क़ुसूर: दोष; क़त्ल: वध; हुक्काम: अधिकारियों; इजाज़त: अनुमति ।
हर ज़ोर-ज़ुल्म के बरक्स सर उठा के जी
मुफ़्ती - ओ - मौलवी -ओ- बरहमन बुरे नहीं
लेकिन जो दिल दिखाए वही राह है सही
इबरत हमें मिली है तजुर्बाते - ज़ीस्त से
करती है जी ख़राब तमन्ना कभी-कभी
दिल में हज़ार दाग़ छुपा कर जिया किए
इल्ज़ाम दें किसे कि तलाफ़ी न हो सकी
तकरीरे - रहबरां में बला की थी गर्मियां
अफ़सोस ! मगर भूख कहीं मुद्द'आ न थी
सरकार की नज़र में इबादत गुनाह थी
फिर काफ़िरों ने पाई सज़ा किस क़ुसूर की
सामान मिरे क़त्ल का तैयार कर लिया
हुक्काम को ख़ुदा से इजाज़त न मिल सकी !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
(मशहूर पाकिस्तानी शायर जनाब नासिर काज़मी साहब मरहूम की ज़मीन, ' अय हमसुख़न वफ़ा का तकाज़ा है अब यही' पर कही हुई ग़ज़ल)
शब्दार्थ: हमसुख़न: समान मत रखने वाले; वफ़ा: आस्था; तकाज़ा: आग्रह; ज़ोर-ज़ुल्म: अन्याय और अत्याचार; बरक्स: समक्ष; मुफ़्ती: धार्मिक मामलों में राय देने वाले, मौलवी: धर्म-ग्रंथ पढ़ाने वाले; बरहमन: ब्राह्मण, ब्रह्म-ज्ञानी; इबरत: सीख, शिक्षा; तजुर्बाते - ज़ीस्त: जीवन के अनुभव; जी: मन; तमन्ना: अभिलाषा; दाग़: दोष; इल्ज़ाम: आरोप; तलाफ़ी: पाप-मुक्ति; तकरीरे - रहबरां: नेताओं के भाषण; बला: अत्यधिक; गर्मियां: ऊर्जाएं; अफ़सोस: खेद; मुद्द'आ: विचार का विषय; इबादत: पूजा-प्रार्थना; गुनाह: अपराध; काफ़िरों: नास्तिकों; क़ुसूर: दोष; क़त्ल: वध; हुक्काम: अधिकारियों; इजाज़त: अनुमति ।
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