न जाने मिरी रूह क्या चाहती है
ख़ुदा से इसी दम मिला चाहती है
तमन्ना बहुत दूर तक आ चुकी है
क़फ़न ज़िंदगी का सिया चाहती है
शबे-वस्ल बेज़ार है मोहसिनों से
सुकूं के लिए तख़्लिया चाहती है
ज़ईफ़ी उतर आई है दुश्मनी पर
हमें दर्द दिल के दिया चाहती है
मिरी आरज़ू ख़ुदनुमाई के पहले
तुम्हारी वफ़ा की रिदा चाहती है
ये: सरकार है चंद सौदागरों की
लहू मुफ़लिसों का पिया चाहती है
बहुत जी चुके सर झुकाए झुकाए
ख़ुदी अर्श को अब छुआ चाहती है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रूह: आत्मा; दम: क्षण; तमन्ना: अभिलाषा; क़फ़न: शवावरण; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; बेज़ार: व्यग्र; मोहसिनों: अनुग्रह करने वालों; सुकूं: शांति; तख़्लिया: एकांत; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; आरज़ू: इच्छा; ख़ुदनुमाई: आत्म-प्रदर्शन, स्वयं प्रकट होना; वफ़ा:निष्ठा; रिदा: चादर, मुखावरण; चंद: कुछ, चार; सौदागरों: व्यापारियों; लहू: रक्त; मुफ़लिसों: निर्धनों; ख़ुदी: स्वाभिमान; अर्श: आकाश ।
ख़ुदा से इसी दम मिला चाहती है
तमन्ना बहुत दूर तक आ चुकी है
क़फ़न ज़िंदगी का सिया चाहती है
शबे-वस्ल बेज़ार है मोहसिनों से
सुकूं के लिए तख़्लिया चाहती है
ज़ईफ़ी उतर आई है दुश्मनी पर
हमें दर्द दिल के दिया चाहती है
मिरी आरज़ू ख़ुदनुमाई के पहले
तुम्हारी वफ़ा की रिदा चाहती है
ये: सरकार है चंद सौदागरों की
लहू मुफ़लिसों का पिया चाहती है
बहुत जी चुके सर झुकाए झुकाए
ख़ुदी अर्श को अब छुआ चाहती है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रूह: आत्मा; दम: क्षण; तमन्ना: अभिलाषा; क़फ़न: शवावरण; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; बेज़ार: व्यग्र; मोहसिनों: अनुग्रह करने वालों; सुकूं: शांति; तख़्लिया: एकांत; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; आरज़ू: इच्छा; ख़ुदनुमाई: आत्म-प्रदर्शन, स्वयं प्रकट होना; वफ़ा:निष्ठा; रिदा: चादर, मुखावरण; चंद: कुछ, चार; सौदागरों: व्यापारियों; लहू: रक्त; मुफ़लिसों: निर्धनों; ख़ुदी: स्वाभिमान; अर्श: आकाश ।
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