अश्क अपनी पे उतर आएं तो क्या कीजिएगा
रूह के ज़ख़्म उभर आएं तो क्या कीजिएगा
कोई सदमा हो कोई ग़म हो तो रो भी लीजे
चश्म हर बात पे भर आएं तो क्या कीजिएगा
लाख गिर्दाब करें ग़र्क़ हमें दरिया में
डूब कर हम जो उबर आएं तो क्या कीजिएगा
हम शबे-वस्ल गुज़ारा करें तन्हा-तन्हा
और वो वक़्ते-सह् र आएं तो क्या कीजिएगा
बदगुमानी में कई दोस्त ज़ेह् न से निकले
अब वही दिल के शह् र आएं तो क्या कीजिएगा
आपका हक़ है शबे-वस्ल के हर लम्हे पर
ख़्वाब दिन में ही नज़र आएं तो क्या कीजिएगा
रोज़ देते हैं हमें आप दुआ जीने की
रोज़ इज़राइल इधर आएं तो क्या कीजिएगा ?!
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
रूह के ज़ख़्म उभर आएं तो क्या कीजिएगा
कोई सदमा हो कोई ग़म हो तो रो भी लीजे
चश्म हर बात पे भर आएं तो क्या कीजिएगा
लाख गिर्दाब करें ग़र्क़ हमें दरिया में
डूब कर हम जो उबर आएं तो क्या कीजिएगा
हम शबे-वस्ल गुज़ारा करें तन्हा-तन्हा
और वो वक़्ते-सह् र आएं तो क्या कीजिएगा
बदगुमानी में कई दोस्त ज़ेह् न से निकले
अब वही दिल के शह् र आएं तो क्या कीजिएगा
आपका हक़ है शबे-वस्ल के हर लम्हे पर
ख़्वाब दिन में ही नज़र आएं तो क्या कीजिएगा
रोज़ देते हैं हमें आप दुआ जीने की
रोज़ इज़राइल इधर आएं तो क्या कीजिएगा ?!
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
Sundar Rachna !
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