हज़ार ज़ुल्म सहें और फिर ख़ुदा समझें
भला बताएं उन्हें हम अवाम क्या समझें
क़दम-क़दम प' सितारे शुआ लुटाएंगे
अगर कहीं हमें वो दोस्त-दिलरुबा समझें
क़फ़स में उम्र कटे, बुलबुलें सना गाएं
अजीब ज़िद है, ज़ौरो-जब्र को शिफ़ा समझें
सवाल उनकी तरबियत पे रोज़ उट्ठेंगे
ख़मोशियों को अगर वो मेरी रज़ा समझें
जिन्हें ख़्याल नहीं मुल्क के ग़रीबों का
उन्हें ख़ुदा के लिए अब न रहनुमा समझें
ख़ुदा बचाए हमें शैख़ की ज़हानत से
पिलाएं मुफ़्त उन्हें और वो बुरा समझें
मिले जो वक़्त उन्हें शाह की इबादत से
तो अह् ले दीन ख़ुदा को कभी ख़ुदा समझें !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ुल्म: अत्याचार; अवाम: जन-सामान्य; शुआ: किरण; दिलरुबा: मनमीत; क़फ़स: पिंजरा; सना: स्तुति; ज़ौरो-जब्र: बल-प्रयोग; शिफ़ा: उपचार, समाधान; तरबियत: शिक्षा-दीक्षा; रज़ा: स्वीकृति, सहमति; रहनुमा: मार्ग-दर्शक, नेता; शैख़: धर्मोपदेशक; ज़हानत: बुद्धिमत्ता; इबादत: पूजा; अह् ले दीन: धार्मिक, अनुयायी।
भला बताएं उन्हें हम अवाम क्या समझें
क़दम-क़दम प' सितारे शुआ लुटाएंगे
अगर कहीं हमें वो दोस्त-दिलरुबा समझें
क़फ़स में उम्र कटे, बुलबुलें सना गाएं
अजीब ज़िद है, ज़ौरो-जब्र को शिफ़ा समझें
सवाल उनकी तरबियत पे रोज़ उट्ठेंगे
ख़मोशियों को अगर वो मेरी रज़ा समझें
जिन्हें ख़्याल नहीं मुल्क के ग़रीबों का
उन्हें ख़ुदा के लिए अब न रहनुमा समझें
ख़ुदा बचाए हमें शैख़ की ज़हानत से
पिलाएं मुफ़्त उन्हें और वो बुरा समझें
मिले जो वक़्त उन्हें शाह की इबादत से
तो अह् ले दीन ख़ुदा को कभी ख़ुदा समझें !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ुल्म: अत्याचार; अवाम: जन-सामान्य; शुआ: किरण; दिलरुबा: मनमीत; क़फ़स: पिंजरा; सना: स्तुति; ज़ौरो-जब्र: बल-प्रयोग; शिफ़ा: उपचार, समाधान; तरबियत: शिक्षा-दीक्षा; रज़ा: स्वीकृति, सहमति; रहनुमा: मार्ग-दर्शक, नेता; शैख़: धर्मोपदेशक; ज़हानत: बुद्धिमत्ता; इबादत: पूजा; अह् ले दीन: धार्मिक, अनुयायी।
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