नए बच्चे बहुत जल्दी मचलना सीख जाते हैं
नज़र चूकी कि बस, हद से निकलना सीख जाते हैं
जहां मां-बाप के दिल में मुनासिब फ़िक्र होती है
वहां बच्चे किताबों से बहलना सीख जाते हैं
न जाने नौजवां क्यूं इस क़दर बेताब होते हैं
ज़रा-सी कामयाबी से उछलना सीख जाते हैं
कभी ताजिर, कभी ख़ादिम, कहीं गांधी, कहीं हिटलर
सियासत में सभी चेहरे बदलना सीख जाते हैं
चरिंदों को शिकायत है कि हम परवाज़ भरते हैं
मुक़ाबिल आ नहीं सकते तो जलना सीख जाते हैं
जिन्हें आता नहीं अपनी बह् र को थामना, अक्सर
हमारे दुश्मनों के साथ चलना सीख जाते हैं
हमारी राह में हरदम फ़रिश्ते ख़ार बोते हैं
मगर हम वक़्त से पहले संभलना सीख जाते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुनासिब फ़िक्र : समुचित चिंता; इस क़दर : इस सीमा तक; बेताब: व्यग्र; ताजिर : व्यापारी; ख़ादिम : सेवक; सियासत: राजनीति; चरिंदों : थल चरों; परवाज़: उड़ान; मुक़ाबिल: सामने, प्रतियोगिता में; बह् र: छंद, मानसिक संतुलन; फ़रिश्ते: देवदूत;
ख़ार: कांटे ।
नज़र चूकी कि बस, हद से निकलना सीख जाते हैं
जहां मां-बाप के दिल में मुनासिब फ़िक्र होती है
वहां बच्चे किताबों से बहलना सीख जाते हैं
न जाने नौजवां क्यूं इस क़दर बेताब होते हैं
ज़रा-सी कामयाबी से उछलना सीख जाते हैं
कभी ताजिर, कभी ख़ादिम, कहीं गांधी, कहीं हिटलर
सियासत में सभी चेहरे बदलना सीख जाते हैं
चरिंदों को शिकायत है कि हम परवाज़ भरते हैं
मुक़ाबिल आ नहीं सकते तो जलना सीख जाते हैं
जिन्हें आता नहीं अपनी बह् र को थामना, अक्सर
हमारे दुश्मनों के साथ चलना सीख जाते हैं
हमारी राह में हरदम फ़रिश्ते ख़ार बोते हैं
मगर हम वक़्त से पहले संभलना सीख जाते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुनासिब फ़िक्र : समुचित चिंता; इस क़दर : इस सीमा तक; बेताब: व्यग्र; ताजिर : व्यापारी; ख़ादिम : सेवक; सियासत: राजनीति; चरिंदों : थल चरों; परवाज़: उड़ान; मुक़ाबिल: सामने, प्रतियोगिता में; बह् र: छंद, मानसिक संतुलन; फ़रिश्ते: देवदूत;
ख़ार: कांटे ।
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