कहां-कहां जनाब आजकल भटकते हैं
तरह-तरह के इत्र जिस्म से महकते हैं
किया सलाम किसी ने कि हंस के देख लिया
तो देखिए कि मियां किस क़दर चहकते हैं
न आएं आप बे-हिजाब ये गुज़ारिश है
यहां तमाम बे-शऊर दिल धड़कते हैं
अजब निज़ाम चुना है अवाम ने अबके
कि गांव-गांव तिफ़्ल भूख से सिसकते हैं
उन्हें शराब दिखाना सही नहीं होगा
बिना पिए जनाब बज़्म में बहकते हैं
ख़ुदा बचाए हमें हुस्ने-शाह से, तौबा
नज़र पड़ी नहीं कि आईने चटकते हैं
'हज़्रते-दाग़ जहां बैठ गए, बैठ गए'
ख़ुदा उठाए, मगर आप कब सरकते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जनाब: श्रीमान; इत्र: सुगंध-सार; जिस्म: शरीर; बे-हिजाब: निरावरण; गुज़ारिश: निवेदन; बे-शऊर: अशिष्ट; निज़ाम: सरकार, व्यवस्था; अवाम: जन-साधारण; तिफ़्ल: शिशु; बज़्म: गोष्ठी, सभा; हुस्ने-शाह: 'शाह' की सुंदरता; तौबा: त्राहिमाम; हज़्रते-दाग़: उर्दू के सबसे बड़े समर्थक, विश्व-विख्यात शायर, यह पंक्ति उन्हीं की ।
तरह-तरह के इत्र जिस्म से महकते हैं
किया सलाम किसी ने कि हंस के देख लिया
तो देखिए कि मियां किस क़दर चहकते हैं
न आएं आप बे-हिजाब ये गुज़ारिश है
यहां तमाम बे-शऊर दिल धड़कते हैं
अजब निज़ाम चुना है अवाम ने अबके
कि गांव-गांव तिफ़्ल भूख से सिसकते हैं
उन्हें शराब दिखाना सही नहीं होगा
बिना पिए जनाब बज़्म में बहकते हैं
ख़ुदा बचाए हमें हुस्ने-शाह से, तौबा
नज़र पड़ी नहीं कि आईने चटकते हैं
'हज़्रते-दाग़ जहां बैठ गए, बैठ गए'
ख़ुदा उठाए, मगर आप कब सरकते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जनाब: श्रीमान; इत्र: सुगंध-सार; जिस्म: शरीर; बे-हिजाब: निरावरण; गुज़ारिश: निवेदन; बे-शऊर: अशिष्ट; निज़ाम: सरकार, व्यवस्था; अवाम: जन-साधारण; तिफ़्ल: शिशु; बज़्म: गोष्ठी, सभा; हुस्ने-शाह: 'शाह' की सुंदरता; तौबा: त्राहिमाम; हज़्रते-दाग़: उर्दू के सबसे बड़े समर्थक, विश्व-विख्यात शायर, यह पंक्ति उन्हीं की ।
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