जंग हो जज़्बात की ये सिलसिला अच्छा नहीं
दोस्ती में रात-दिन शिकवा-गिला अच्छा नहीं
उम्र भर का साथ हो तो क्या ख़ुदी, कैसी अना
हमसफ़र से हर क़दम पर फ़ासला अच्छा नहीं
क़ुदरतन टूटे क़ह्र तो क्या शिकायत अर्श से
सहर:-ए-दिल में उठे जो ज़लज़ला, अच्छा नहीं
रात-दिन डूबे हुए हैं शायरी की फ़िक्र में
घर चलाने के लिए ये मश्ग़ला अच्छा नहीं
इब्ने-इन्सां के लिए ये ज़िंदगी भी फ़र्ज़ है
मग़फ़िरत को ख़ुदकुशी का रास्ता अच्छा नहीं
एक ख़ालिक़, एक मालिक, कौन-सा फ़िरक़ा बड़ा ?
रहबरी के नाम पर ये मुद्द'आ अच्छा नहीं
रह गईं हों जब रिआया की दलीलें अनसुनी
शाह के हक़ में ख़ुदा का फ़ैसला अच्छा नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जंग: युद्ध, संघर्ष; जज़्बात: भावनाएं; सिलसिला: क्रम; शिकवा-गिला: उलाहने; ख़ुदी: स्वाभिमान; अना: अहंकार; हमसफ़र: सहयात्री, जीवनसाथी; फ़ासला: अंतराल, दूरी; क़ुदरतन: प्राकृतिक रूप से; क़ह्र: आपदा; अर्श: आकाश, ईश्वर, नियति; सहर:-ए-दिल: हृदय का मरुस्थल, शुष्क मन; ज़लज़ला: भूकम्प; मश्ग़ला: व्यस्तता, दिनचर्या; इब्ने-इन्सां: मनुष्य-संतान; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; मग़फ़िरत को: मोक्ष हेतु; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; ख़ालिक़: सृजन कर्त्ता; मालिक: ईश्वर, ब्रह्म; फ़िरक़ा: संप्रदाय; रहबरी: नेतृत्व, नेतागीरी; मुद्द'आ: विषय, बिंदु; रिआया: प्रजा, जनसामान्य; दलीलें: प्रतिवाद; हक़: पक्ष।
दोस्ती में रात-दिन शिकवा-गिला अच्छा नहीं
उम्र भर का साथ हो तो क्या ख़ुदी, कैसी अना
हमसफ़र से हर क़दम पर फ़ासला अच्छा नहीं
क़ुदरतन टूटे क़ह्र तो क्या शिकायत अर्श से
सहर:-ए-दिल में उठे जो ज़लज़ला, अच्छा नहीं
रात-दिन डूबे हुए हैं शायरी की फ़िक्र में
घर चलाने के लिए ये मश्ग़ला अच्छा नहीं
इब्ने-इन्सां के लिए ये ज़िंदगी भी फ़र्ज़ है
मग़फ़िरत को ख़ुदकुशी का रास्ता अच्छा नहीं
एक ख़ालिक़, एक मालिक, कौन-सा फ़िरक़ा बड़ा ?
रहबरी के नाम पर ये मुद्द'आ अच्छा नहीं
रह गईं हों जब रिआया की दलीलें अनसुनी
शाह के हक़ में ख़ुदा का फ़ैसला अच्छा नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जंग: युद्ध, संघर्ष; जज़्बात: भावनाएं; सिलसिला: क्रम; शिकवा-गिला: उलाहने; ख़ुदी: स्वाभिमान; अना: अहंकार; हमसफ़र: सहयात्री, जीवनसाथी; फ़ासला: अंतराल, दूरी; क़ुदरतन: प्राकृतिक रूप से; क़ह्र: आपदा; अर्श: आकाश, ईश्वर, नियति; सहर:-ए-दिल: हृदय का मरुस्थल, शुष्क मन; ज़लज़ला: भूकम्प; मश्ग़ला: व्यस्तता, दिनचर्या; इब्ने-इन्सां: मनुष्य-संतान; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; मग़फ़िरत को: मोक्ष हेतु; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; ख़ालिक़: सृजन कर्त्ता; मालिक: ईश्वर, ब्रह्म; फ़िरक़ा: संप्रदाय; रहबरी: नेतृत्व, नेतागीरी; मुद्द'आ: विषय, बिंदु; रिआया: प्रजा, जनसामान्य; दलीलें: प्रतिवाद; हक़: पक्ष।
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