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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

हम दफ़ा हो गए !

नाम  सुन  कर  हमारा  ख़फ़ा  हो  गए
शाह  जब  से  हुए  वो  ख़ुदा  हो  गए

एक  ताज़ा  ख़बर  आपके  भी  लिए
बेवफ़ा  दोस्त  सब  बावफ़ा  हो  गए

एहतरामे-शहादत  उन्हें  भी  मिले
इश्क़  की  राह  में  जो  फ़ना  हो  गए

चंद  अश्'आर  अपने  शम्'अ  से  जले
चंद  अश्'आर  बादे-सबा  हो  गए

ख़ूब  मोहसिन  मिले  हैं  हमें  ज़ीस्त  में
वक़्त  आया  नहीं ,   सब  हवा  हो  गए

तोड़ना  चाहती  थी  हमें  शामे-ग़म
दर्द  लेकिन  हमारी  दवा  हो  गए

दफ़्अतन  लोग  दिल  लूट  कर  ले  गए
और  बस,  हम  शहीदे-वफ़ा  हो  गए

लीजिए,  अब  ज़रा  मुस्कुरा  दीजिए
आपकी  बज़्म  से  हम  दफ़ा  हो  गए  !

                                                                   (2014)

                                                          -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ख़फ़ा: रुष्ट; बेवफ़ा: निष्ठाहीन; बावफ़ा: निष्ठावान; एहतरामे-शहादत: वीरगति पाने का सम्मान; फ़ना: बलिदान; चंद: कुछ; अश्'आर: शे'र का बहुवचन; शम्'अ: दीपिका; बादे-सबा: प्रातः समीर; मोहसिन: अनुग्रहकर्त्ता; ज़ीस्त: जीवन; दफ़्अतन: सहसा; शहीदे-वफ़ा: निष्ठा पर बलि; बज़्म: सभा; दफ़ा: दूर, अदृश्य।


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