कल-आज क़त्ले-आम का त्यौहार तो नहीं ?
शैतान कहीं शाह पर सवार तो नहीं ?
सोते न जागते हैं न खाते हैं चैन से
फिर इश्क़ में जनाब गिरफ़्तार तो नहीं ?
बेशक़, हम आसमां से दिले-हूर ले उड़े
लेकिन हम आपके भी गुनहगार तो नहीं ?
हर जिन्स को लगा है मंहगाई का गहन
जम्हूर है, अवाम की सरकार तो नहीं !
कहने को कह रहे हैं बहुत कुछ तमाम लोग
हालात बदल जाएं ये आसार तो नहीं
तेवर ज़रूर सख़्त रहे हों कभी-कभी
अफ़सोस ! क़लम कारगर हथियार तो नहीं !
मुफ़लिस सही, फ़क़ीर सही, दर-ब-दर सही
शाही इनायतों के तलबगार तो नहीं !
जायज़ है हक़ हमारा सुख़न की ज़मीन पर
क़ाबिज़ हैं जहां हम, किराएदार तो नहीं !
अल्लाह तय करे कि रखेगा कहां हमें
हम मिन्नते-हुज़ूर को तैयार तो नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़त्ले-आम: जन-संहार; दिले-हूर: अप्सरा का हृदय; गुनहगार: अपराधी; जिन्स: उत्पाद, वस्तु; गहन: ग्रहण; जम्हूर: लोकतंत्र; अवाम: जन-साधारण; हालात: परिस्थितियां; आसार: संकेत; तेवर: मुद्राएं; कारगर: प्रभावी; मुफ़लिस: निर्धन; फ़क़ीर: अकिंचन, साधु, भिक्षुक; दर-ब-दर: यहां-वहां भटकने वाला, गृह-विहीन; इनायतों: कृपाओं; तलबगार: अभिलाषी; जायज़: उचित, वैध; हक़: अधिकार; सुख़न: सृजन; क़ाबिज़:आधिपत्य जमाए; मिन्नते-हुज़ूर: ईश्वर की चिरौरी।
शैतान कहीं शाह पर सवार तो नहीं ?
सोते न जागते हैं न खाते हैं चैन से
फिर इश्क़ में जनाब गिरफ़्तार तो नहीं ?
बेशक़, हम आसमां से दिले-हूर ले उड़े
लेकिन हम आपके भी गुनहगार तो नहीं ?
हर जिन्स को लगा है मंहगाई का गहन
जम्हूर है, अवाम की सरकार तो नहीं !
कहने को कह रहे हैं बहुत कुछ तमाम लोग
हालात बदल जाएं ये आसार तो नहीं
तेवर ज़रूर सख़्त रहे हों कभी-कभी
अफ़सोस ! क़लम कारगर हथियार तो नहीं !
मुफ़लिस सही, फ़क़ीर सही, दर-ब-दर सही
शाही इनायतों के तलबगार तो नहीं !
जायज़ है हक़ हमारा सुख़न की ज़मीन पर
क़ाबिज़ हैं जहां हम, किराएदार तो नहीं !
अल्लाह तय करे कि रखेगा कहां हमें
हम मिन्नते-हुज़ूर को तैयार तो नहीं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़त्ले-आम: जन-संहार; दिले-हूर: अप्सरा का हृदय; गुनहगार: अपराधी; जिन्स: उत्पाद, वस्तु; गहन: ग्रहण; जम्हूर: लोकतंत्र; अवाम: जन-साधारण; हालात: परिस्थितियां; आसार: संकेत; तेवर: मुद्राएं; कारगर: प्रभावी; मुफ़लिस: निर्धन; फ़क़ीर: अकिंचन, साधु, भिक्षुक; दर-ब-दर: यहां-वहां भटकने वाला, गृह-विहीन; इनायतों: कृपाओं; तलबगार: अभिलाषी; जायज़: उचित, वैध; हक़: अधिकार; सुख़न: सृजन; क़ाबिज़:आधिपत्य जमाए; मिन्नते-हुज़ूर: ईश्वर की चिरौरी।
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर आये
और फॉलो करके अपने सुझाव दे !
जायज़ है हक़ हमारा सुख़न की ज़मीन पर
जवाब देंहटाएंक़ाबिज़ हैं जहां हम, किराएदार तो नहीं ! ----- वाह भाई जी बेहद उम्दा और प्रभावी गजल
बहुत सुंदर ---
उत्कृष्ट
सादर
आग्रह है ---- मेरे ब्लॉग में भी पधारें
शरद का चाँद -------
अल्लाह तय करे कि रखेगा कहां हमें
जवाब देंहटाएंहम मिन्नते-हुज़ूर को तैयार तो नहीं !
...बहुत सही..
Bahut sunder prastuti !!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।।। बेहद।।। बोलती हुयी
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