ये मुमकिन नहीं है, कभी दिन न बदलें
नए दौर के साथ कमसिन न बदलें
मुखौटे जमा कर रखे हैं हज़ारों
बदलते रहें रोज़, लेकिन न बदलें
सभी लोग हैं मुतमईं इस शहर के
ख़ुदा भी बदल जाए, मोहसिन न बदलें
बदलना ज़रूरी लगा भी उन्हें तो
तहय्या करेंगे, मिरे बिन न बदलें
नज़रिया ग़लत है नए हुक्मरां का
अहद कीजिए वो क़राइन न बदलें
ज़माना कहां से कहां आ चुका है
त'अज्जुब नहीं क्या कि मोमिन न बदलें
बड़ी पुरअसर है अज़ां दुश्मनों की
अरज़ है हमारी, मुअज़्ज़िन न बदलें !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुमकिन: संभव; दौर: कालखंड; कमसिन: युवा, कम आयु वाले; मुतमईं: आश्वस्त; मोहसिन: कृपालु, प्रेमी;
तहय्या: सुनिश्चित, दृढ़ संकल्प; नज़रिया: दृष्टिकोण; हुक्मरां: शासक-वर्ग; अहद: प्रण; क़राइन: सभ्यता के प्रतिमान, शिष्टाचार;
ज़माना: समय; त'अज्जुब: आश्चर्य; मोमिन: आस्तिक जन; पुरअसर: प्रभावी; अरज़: निवेदन, प्रार्थना; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला।
नए दौर के साथ कमसिन न बदलें
मुखौटे जमा कर रखे हैं हज़ारों
बदलते रहें रोज़, लेकिन न बदलें
सभी लोग हैं मुतमईं इस शहर के
ख़ुदा भी बदल जाए, मोहसिन न बदलें
बदलना ज़रूरी लगा भी उन्हें तो
तहय्या करेंगे, मिरे बिन न बदलें
नज़रिया ग़लत है नए हुक्मरां का
अहद कीजिए वो क़राइन न बदलें
ज़माना कहां से कहां आ चुका है
त'अज्जुब नहीं क्या कि मोमिन न बदलें
बड़ी पुरअसर है अज़ां दुश्मनों की
अरज़ है हमारी, मुअज़्ज़िन न बदलें !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुमकिन: संभव; दौर: कालखंड; कमसिन: युवा, कम आयु वाले; मुतमईं: आश्वस्त; मोहसिन: कृपालु, प्रेमी;
तहय्या: सुनिश्चित, दृढ़ संकल्प; नज़रिया: दृष्टिकोण; हुक्मरां: शासक-वर्ग; अहद: प्रण; क़राइन: सभ्यता के प्रतिमान, शिष्टाचार;
ज़माना: समय; त'अज्जुब: आश्चर्य; मोमिन: आस्तिक जन; पुरअसर: प्रभावी; अरज़: निवेदन, प्रार्थना; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला।
बेहतरीन सुरेश भाई !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-10-2014) को "देश जश्न में डूबा हुआ" (चर्चा मंच-1779) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Waah ... Lajawaab abhivyakti...gazab ki lekhani !!
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