क़ल्ब में दर्द की जगह रखना
विसाले-यार की वजह रखना
नज़र में आएंगे अंधेरे भी
बचा के रूह में सुबह रखना
शह्र के रंग-ढंग ठीक नहीं
ज़रा आमाल पर निगह रखना
वो आ रहे हैं फ़ैसला करने
दिलो-दिमाग़ में सुलह रखना
कभी न ख़ुश्क हों हसीं आंखें
बचा के अश्क इस तरह रखना
उतर रहे हो जंगे-ईमां में
ज़ेह्न में जज़्ब:-ए-फ़तह रखना
अभी हैं राह में, पहुंचते हैं
ख़ुदा से आप ज़रा कह रखना !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़ल्ब: हृदय; विसाले-यार: प्रिय से मिलन; वजह: कारण; रूह: आत्मा, अंतर्मन; शह्र: शहर, नगर; आमाल: आचरण;
निगह: निगाह का लघु, दृष्टि; दिलो-दिमाग़: मन-मस्तिष्क; सुलह: समझौते की भावना; ख़ुश्क: शुष्क; जंगे-ईमां: निष्ठा का/ वैचारिक युद्ध; ज़ेह्न: मस्तिष्क, ध्यान; जज़्ब:-ए-फ़तह: विजय का भाव।
विसाले-यार की वजह रखना
नज़र में आएंगे अंधेरे भी
बचा के रूह में सुबह रखना
शह्र के रंग-ढंग ठीक नहीं
ज़रा आमाल पर निगह रखना
वो आ रहे हैं फ़ैसला करने
दिलो-दिमाग़ में सुलह रखना
कभी न ख़ुश्क हों हसीं आंखें
बचा के अश्क इस तरह रखना
उतर रहे हो जंगे-ईमां में
ज़ेह्न में जज़्ब:-ए-फ़तह रखना
अभी हैं राह में, पहुंचते हैं
ख़ुदा से आप ज़रा कह रखना !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़ल्ब: हृदय; विसाले-यार: प्रिय से मिलन; वजह: कारण; रूह: आत्मा, अंतर्मन; शह्र: शहर, नगर; आमाल: आचरण;
निगह: निगाह का लघु, दृष्टि; दिलो-दिमाग़: मन-मस्तिष्क; सुलह: समझौते की भावना; ख़ुश्क: शुष्क; जंगे-ईमां: निष्ठा का/ वैचारिक युद्ध; ज़ेह्न: मस्तिष्क, ध्यान; जज़्ब:-ए-फ़तह: विजय का भाव।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें