हमें क़रीब से देखो, तुम्हारा ख़्वाब हैं हम
जिगर संभाल के रखना कि बे-हिजाब हैं हम
न दिल में राज़ न आंखों में मस्लेहत कोई
किसी भी वर्क़ से पढ़िए, खुली किताब हैं हम
तमाम मन्नतों से हम जहां में आए हैं
बुज़ुर्गो-वाल्दैन का कोई सवाब हैं हम
तुम्हारा साथ निभाएंगे हर ख़ुशी-ग़म में
तरह-तरह के रंग में खिले गुलाब हैं हम
हमारा काम एहतेरामे-हुस्न है यूं तो
किसी-किसी निगाह में बहुत ख़राब हैं हम
हुआ करें हुज़ूर शाहे-हिंद, हमको क्या ?
रियासते-ख़ुलूसो-उन्स के नवाब हैं हम
किसी की ख़ुल्द, किसी का जहां, किसी का दिल
जहां कहीं रहें, वहीं पे लाजवाब हैं हम !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जिगर: मन; बे-हिजाब: निरावरण; मस्लेहत: गुप्त उद्देश्य; वर्क़: पृष्ठ; बुज़ुर्गो-वाल्दैन: पूर्वज और माता-पिता; सवाब: पुण्य; एहतेरामे-हुस्न: सौंदर्य का सम्मान; निगाह: दृष्टि; शाहे-हिंद: भारत का राजा; रियासते-ख़ुलूसो-उन्स: आत्मीयता और स्नेह का राज्य; नवाब: राजा; ख़ुल्द: स्वर्ग; जहां: संसार ।
जिगर संभाल के रखना कि बे-हिजाब हैं हम
न दिल में राज़ न आंखों में मस्लेहत कोई
किसी भी वर्क़ से पढ़िए, खुली किताब हैं हम
तमाम मन्नतों से हम जहां में आए हैं
बुज़ुर्गो-वाल्दैन का कोई सवाब हैं हम
तुम्हारा साथ निभाएंगे हर ख़ुशी-ग़म में
तरह-तरह के रंग में खिले गुलाब हैं हम
हमारा काम एहतेरामे-हुस्न है यूं तो
किसी-किसी निगाह में बहुत ख़राब हैं हम
हुआ करें हुज़ूर शाहे-हिंद, हमको क्या ?
रियासते-ख़ुलूसो-उन्स के नवाब हैं हम
किसी की ख़ुल्द, किसी का जहां, किसी का दिल
जहां कहीं रहें, वहीं पे लाजवाब हैं हम !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जिगर: मन; बे-हिजाब: निरावरण; मस्लेहत: गुप्त उद्देश्य; वर्क़: पृष्ठ; बुज़ुर्गो-वाल्दैन: पूर्वज और माता-पिता; सवाब: पुण्य; एहतेरामे-हुस्न: सौंदर्य का सम्मान; निगाह: दृष्टि; शाहे-हिंद: भारत का राजा; रियासते-ख़ुलूसो-उन्स: आत्मीयता और स्नेह का राज्य; नवाब: राजा; ख़ुल्द: स्वर्ग; जहां: संसार ।
हुआ करें हुज़ूर शाहे-हिंद, हमको क्या ?
जवाब देंहटाएंरियासते-ख़ुलूसो-उन्स के नवाब हैं हम
एक एक शेर उम्दा.. उससे भी उम्दा... आभार
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआज हिंदी ब्लॉग समूह फिर से चालू हो गया आप सभी से विनती है की कृपया आप सभी पधारें
शनिवार- 18/10/2014 नेत्रदान करना क्यों जरूरी है
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः35
अच्छी रचना स्वप्निल जी !
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