मुल्क को ज़िंदा जवानी चाहिए
आंख में भरपूर पानी चाहिए
हो चुके वादे तरक़्क़ी के बहुत
अब इरादों में रवानी चाहिए
हो अवध की शाम की ख़ुशबू जहां
सुब्ह काशी की सुहानी चाहिए
मुल्क के हालात के मद्देनज़र
इक फ़रिश्ता आसमानी चाहिए
सिर्फ़ लौहो-संग ही काफ़ी नहीं
अब दिलों में आग-पानी चाहिए
हैं बहुत चर्चे शहर में आपके
सच हमें ख़ुद की ज़ुबानी चाहिए
मुल्क में जब्रो-ज़िना है, ज़ुल्म है
आपको कैसी कहानी चाहिए ?
रिज़्क़ पाते हैं पसीना बेच कर
दिल प' अपनी हुक्मरानी चाहिए !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इरादों: संकल्पों; रवानी: प्रवाह, गति; हालात: घटनाक्रम; मद्देनज़र: दृष्टिगत; फ़रिश्ता: देवदूत; आसमानी: आकाशीय, दैवीय; लौहो-संग: लौह और पत्थर, शारीरिक शक्ति; आग-पानी: ऊर्जा और संवेदनशीलता; चर्चे: चर्चाएं; ख़ुद की ज़ुबानी: आत्म-वृत्तांत;
जब्रो-ज़िना: बल-प्रयोग और दुष्कर्म; ज़ुल्म: अत्याचार; रिज़्क़: दो समय का भोजन; हुक्मरानी: शासन, पूर्ण स्वतंत्रता।
आंख में भरपूर पानी चाहिए
हो चुके वादे तरक़्क़ी के बहुत
अब इरादों में रवानी चाहिए
हो अवध की शाम की ख़ुशबू जहां
सुब्ह काशी की सुहानी चाहिए
मुल्क के हालात के मद्देनज़र
इक फ़रिश्ता आसमानी चाहिए
सिर्फ़ लौहो-संग ही काफ़ी नहीं
अब दिलों में आग-पानी चाहिए
हैं बहुत चर्चे शहर में आपके
सच हमें ख़ुद की ज़ुबानी चाहिए
मुल्क में जब्रो-ज़िना है, ज़ुल्म है
आपको कैसी कहानी चाहिए ?
रिज़्क़ पाते हैं पसीना बेच कर
दिल प' अपनी हुक्मरानी चाहिए !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इरादों: संकल्पों; रवानी: प्रवाह, गति; हालात: घटनाक्रम; मद्देनज़र: दृष्टिगत; फ़रिश्ता: देवदूत; आसमानी: आकाशीय, दैवीय; लौहो-संग: लौह और पत्थर, शारीरिक शक्ति; आग-पानी: ऊर्जा और संवेदनशीलता; चर्चे: चर्चाएं; ख़ुद की ज़ुबानी: आत्म-वृत्तांत;
जब्रो-ज़िना: बल-प्रयोग और दुष्कर्म; ज़ुल्म: अत्याचार; रिज़्क़: दो समय का भोजन; हुक्मरानी: शासन, पूर्ण स्वतंत्रता।
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