दुश्मनों को ज़रा सहा जाए
आज ख़ामोश ही रहा जाए
फ़ित्रते-हुस्न ही अधूरी है
चांद को क्यूं बुरा कहा जाए
फज्र तक इंतज़ार कर लीजे
क्या ख़बर, वो क़सम निभा जाए
दिल करे है तवाफ़ यारों का
एक सज्दा अता किया जाए
मौत का वक़्त तय नहीं जब तक
क्यूं न दिल खोल कर जिया जाए
मंज़िलें ख़ुद क़रीब आती हैं
सब्र से काम गर लिया जाए
दरिय:-ए-नूर है शरद पूनम
चांद की नाव में बहा जाए
आख़िरत की नमाज़ मत पढ़िये
दिल कहीं होश में न आ जाए !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ित्रते-हुस्न: सौंदर्य की प्रकृति; फज्र: पौ फटना; इंतज़ार: प्रतीक्षा; तवाफ़: आस-पास घूमना, परिक्रमा; यारों: प्रिय;
सज्दा: भूमि पर शीश झुका कर प्रणाम; अता: प्रदान; मंज़िलें: लक्ष्य; सब्र: धैर्य; गर: यदि; दरिय:-ए-नूर: प्रकाश की नदी;
आख़िरत: अंतिम क्षण, मृत्यु का क्षण ।
फ़ित्रते-हुस्न ही अधूरी है
चांद को क्यूं बुरा कहा जाए
फज्र तक इंतज़ार कर लीजे
क्या ख़बर, वो क़सम निभा जाए
दिल करे है तवाफ़ यारों का
एक सज्दा अता किया जाए
मौत का वक़्त तय नहीं जब तक
क्यूं न दिल खोल कर जिया जाए
मंज़िलें ख़ुद क़रीब आती हैं
सब्र से काम गर लिया जाए
दरिय:-ए-नूर है शरद पूनम
चांद की नाव में बहा जाए
आख़िरत की नमाज़ मत पढ़िये
दिल कहीं होश में न आ जाए !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ित्रते-हुस्न: सौंदर्य की प्रकृति; फज्र: पौ फटना; इंतज़ार: प्रतीक्षा; तवाफ़: आस-पास घूमना, परिक्रमा; यारों: प्रिय;
सज्दा: भूमि पर शीश झुका कर प्रणाम; अता: प्रदान; मंज़िलें: लक्ष्य; सब्र: धैर्य; गर: यदि; दरिय:-ए-नूर: प्रकाश की नदी;
आख़िरत: अंतिम क्षण, मृत्यु का क्षण ।
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