इश्क़ में दिल भी जलेगा, जान भी
मुफ़्त में मिलता नहीं एहसान भी
रहबरों पर अब नहीं आता यक़ीं
वो अगर क़ुर्बान कर दें जान भी
इस क़दर तोड़े रिआया पर सितम
शाह से डरने लगा शैतान भी
हर कहीं दंगाइयों के रक़्स से
हैं परेशां लोग सब, हैरान भी
आपकी ख़ूंरेज़ नज़रें देख कर
कांप उठते हैं मिरे अरमान भी
याद आता है कभी वो शख़्स भी
दे रहा था जो तुम्हें ईमान भी ?
उड़ गए तो लौट कर आते नहीं
हैं परिंदों की तरह इंसान भी !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसान: अनुग्रह; रहबरों: नेताओं; यक़ीं: विश्वास; क़ुर्बान: बलिदान; रिआया: नागरिक; सितम: अत्याचार; शैतान: दैत्य; रक़्स: नृत्य; परेशां:विचलित; हैरान: विस्मित; ख़ूंरेज़: हिंसक, रक्तिम; अरमान: अभिलाषा; शख़्स: व्यक्ति; ईमान: आस्थाएं; परिंदों: पक्षियों।
मुफ़्त में मिलता नहीं एहसान भी
रहबरों पर अब नहीं आता यक़ीं
वो अगर क़ुर्बान कर दें जान भी
इस क़दर तोड़े रिआया पर सितम
शाह से डरने लगा शैतान भी
हर कहीं दंगाइयों के रक़्स से
हैं परेशां लोग सब, हैरान भी
आपकी ख़ूंरेज़ नज़रें देख कर
कांप उठते हैं मिरे अरमान भी
याद आता है कभी वो शख़्स भी
दे रहा था जो तुम्हें ईमान भी ?
उड़ गए तो लौट कर आते नहीं
हैं परिंदों की तरह इंसान भी !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसान: अनुग्रह; रहबरों: नेताओं; यक़ीं: विश्वास; क़ुर्बान: बलिदान; रिआया: नागरिक; सितम: अत्याचार; शैतान: दैत्य; रक़्स: नृत्य; परेशां:विचलित; हैरान: विस्मित; ख़ूंरेज़: हिंसक, रक्तिम; अरमान: अभिलाषा; शख़्स: व्यक्ति; ईमान: आस्थाएं; परिंदों: पक्षियों।
सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर आये.