दर्द में डूबा हुआ - सा ख़्वाब है
ज़िंदगी टूटा हुआ-सा ख़्वाब है
अजनबी तू कौन है , चेहरा तेरा
उम्र- भर देखा हुआ -सा ख़्वाब है
हसरतों की भीड़ में गुमग़श्त: दिल
आँख से बिछड़ा हुआ-सा ख़्वाब है
आपकी ज़र्रानवाज़ी है हुज़ूर
दिल अगर बिखरा हुआ-सा ख़्वाब है
आप इसको शौक़ से कहिये ग़ज़ल
ये: तो बस , उलझा हुआ-सा ख़्वाब है
चांदनी में तर-ब-तर तस्वीर-ए-ताज
ख़्वाब में लिपटा हुआ-सा ख़्वाब है।
(2004)
-सुरेश स्वप्निल
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