इक मुकम्मल जहां चाहिए
आँख - भर आसमां चाहिए
घर जलाती हुई भीड़ से
साफ़-सुथरा बयां चाहिए
हसरतों की ज़मीं पर कहीं
दर्द को आशियां चाहिए
बेहिसी के अंधेरों में अब
आह की बिजलियाँ चाहिए
लो बहार आ गई दर्द पर
चार-छह तितलियाँ चाहिए
सरज़मीं -ए- महावीर पर
सब्र का इम्तेहां चाहिए
शाह-ए-हिन्दोस्तां क़ौम को
जिंदगी की अमां चाहिए
आप दे दें हमें भी सज़ा
जुर्म कुछ तो हुआ चाहिए।
(2002, 9 दिस .)
- सुरेश स्वप्निल
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