रूह-ए-ममनून पे लिपटी है वो: ज़ंजीर तेरी
मुझको हर शख़्स समझने लगा तस्वीर तेरी
मैं जो ग़ाफ़िल हूँ ज़रा तू ही ख़ुलासा कर दे
क्यूँ मेरा हाल बयां करती है तहरीर तेरी
मैं ख़यालों की तरह रूह पे छा जाऊंगा
रोक पाए तो मुझे रोक ले तदबीर तेरी
मेरी मर्ज़ी है तुझे याद करूँ या न करूँ
तू संभल जा के: बदल दूँ न मैं तासीर तेरी
मैं तो हर सिम्त नुमांया हूँ तू ईमान उठा
तू अगर पर्दानशीं है तो ये: तकदीर तेरी।
(2009)
-सुरेश स्वप्निल
मुझको हर शख़्स समझने लगा तस्वीर तेरी
मैं जो ग़ाफ़िल हूँ ज़रा तू ही ख़ुलासा कर दे
क्यूँ मेरा हाल बयां करती है तहरीर तेरी
मैं ख़यालों की तरह रूह पे छा जाऊंगा
रोक पाए तो मुझे रोक ले तदबीर तेरी
मेरी मर्ज़ी है तुझे याद करूँ या न करूँ
तू संभल जा के: बदल दूँ न मैं तासीर तेरी
मैं तो हर सिम्त नुमांया हूँ तू ईमान उठा
तू अगर पर्दानशीं है तो ये: तकदीर तेरी।
(2009)
-सुरेश स्वप्निल
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