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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

ये: नया साल ...


फिर  एक  साल  कुछ  इस  तरह  से  बीत  गया
के: जैसे  भोर  का तारा  सहम  के डूब  गया
के: जैसे  दिल  किसी  निगाह  पे संभल  न सका , टूट  गया
के: साथ  चलते  हुए  हमसफ़र  ही  छूट  गया ...

के: जैसे  आँख  से  किसी  की  मोती  टपका
के: जैसे   खिलते  हुए  फूल  की  पंखुरी  टूटी
के: जैसे  बौरों  से  लदी  शाख़ें  बोझ  से  इतना झुकीं, टूट  गईं
के: जैसे  बदनसीब  राही  को
सामने  आ के  भी  मंज़िल  न  मिली, रूठ  गई
के: जैसे  चाँद  के  चेहरे  पे  बादलों  की  नक़ाब
दिल   जले  आशिक़ों  ने  डाली  हो
के: जैसे  लूट  के  पूनम  के  उजालों  को कहीं
हौले  से  आई   रात  काली  हो
के: टिमटिमाते  हुए  दीप  की  लौ  डूब  गई
के: जैसे  हँसते  हुए  किसी  नन्हें  को  शर्म  आई  हो
के: जैसे  सुनहरी , रंग  भरी  शाम  के बाद
उदास -चेहरा  रात  आई  हो
के: जैसे  सम  पे  आ  गए  हों  मियां  मेहंदी  हसन ....

ये: नया  साल  अब  कुछ  इस  तरह  से  आया  है ...
जैसे  गुल-ए-शगुफ़्त:  में  महक  आए
जैसे  ख़ामोश  परिंदे  चहक  के   जाग  उठें
जैसे  मायूस  दिलों  में  ज़रा-सी   आग उठे
जैसे  सूखे  हुए  होठों  पे  हंसी  आई  हो
जैसे  पलटा  हो  किसी  ने  किताब  का  पन्ना ...
जैसे  तुलसी  ने  शुरू  की  हो  नई  चौपाई
जैसे  हरिओम  शरण  छेड़ें  भजन
जैसे सूरज, नई  सुबह  से  मिलने  आये

ये:  नया  साल  कुछ  इस  तरह  से  आया  है .....
                  
                                                     (31 दिसं ; 1974)

                                                     -सुरेश  स्वप्निल 

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