सब जाने अनजाने लोग
आए फूल चढ़ाने लोग
कौन फ़रिश्ता आया है
चौंक गए सरहाने लोग
कल उनकी भी बारी है
डरते हैं दीवाने लोग
अपनी घड़ी तो आ पहुंची
छेड़ेंगे अफ़साने लोग
हमको बलम की लगन लगी
क्या समझें बौराने लोग
रोज़-ए-जज़ा भी आ पहुंचा
कर लें ख़ूब बहाने लोग
(1979)
- सुरेश स्वप्निल
वाह | जारी रखें |
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